QUOTES ON #GHAZALBYKHWAB

#ghazalbykhwab quotes

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12 APR 2021 AT 20:42

न नींदें हैं न ख़्वाब हैं न आप दस्तियाब हैं
इन आँखों के नसीब में अज़ाब ही अज़ाब हैं

ख़ुलूस की तलाश में हैं ऐसे मोड़ पर जहाँ
मैं भी शिकस्त-याब हूँ, वो भी शिकस्त-याब हैं

अगरचे सहरा-ए-वफ़ा में तश्ना-लब हैं सब के सब
मगर करें तो क्या करें कि हर तरफ़ सराब हैं

अमानतें किसी की हैं हमारे पास अब जो ये
शिकस्ता दिल, चुभन, घुटन, उदासी, इज़्तिराब हैं

न हो सके ख़ुशी में ख़ुश न ग़म में ग़म-ज़दा हुए
हमारी ज़िंदगी के कुछ अलग थलग हिसाब हैं

कहानियाँ, मुसव्वरी, किताबें, फ़िल्म, शायरी
सुकून-ए-दिल की आस में खँगाले सब ये बाब हैं

कभी बड़े ही नाज़ से नज़र में रखते थे जिन्हें
हमीं तुम्हारी आँखों के वो कम-नसीब ख़्वाब हैं

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18 JUN 2019 AT 20:17

फूल कली पंछी तितली बन सकती थी
ख़ुद को मिटा कर मैं कुछ भी बन सकती थी

आँखो में पानी और जिस्‍म है मिट्टी का
मैं भी शायद एक नदी बन सकती थी

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25 MAY 2019 AT 12:47

गुज़र रही है बिना बात ज़िंदगी उनकी
जो अब तलक रहे अनजान तेरी ख़ुशबू से

सियाह रात में सूरज तुलूअ हो गोया
मिरा ये दिल है दरख़्शान तेरी ख़ुशबू से

जो 'ख़्वाब' दफ़्न थे आँखों की क़ब्र में अब तक
तड़प उठे हैं वो बेजान तेरी ख़ुशबू से

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7 APR 2019 AT 15:25

ग़मों में हँस रही हूँ मैं
मेरा तुम क़हक़हा सोचो

चलो कर लें हिसाब-ए-इश्क़
दिया क्या, क्या लिया सोचो

हमारा खूबसूरत जिस्‍म
है मिट्टी और क्या सोचो

किसी का सच किसी का झूठ
अब उसने क्या कहा सोचो

ग़ज़लगोई करेंगे 'ख़्वाब'
ये सोचा किस ने था सोचो

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23 MAR 2020 AT 11:52

मुसाफ़िरों की तरह रहगुज़र में रहता है
ये रास्ता भी मुसलसल सफ़र में रहता है

हर एक कमरे में आईना इसलिए रक्खा
लगे कि कोई मेरे साथ घर में रहता है

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5 AUG 2021 AT 20:31

मुसाफ़िरों की तरह रहगुज़र में रहता है
ये रास्ता भी मुसलसल सफ़र में रहता है

हर एक कमरे में आइना इसलिए रक्खा
लगे कि कोई मेरे साथ घर में रहता है

कोई लगा ले अगर एक कश उदासी का
तो फिर वो उम्र-भर उसके असर में रहता है

अजीब हाल है तुझसे बिछड़ के भी अब तक
ये दिल तुझी से बिछड़ने के डर में रहता है

अगर मैं जान भी दे दूँ तो कोई उफ़ न करे
अगर वो उफ़ भी करे तो ख़बर में रहता है

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17 JUL 2019 AT 14:15

// ग़ज़ल //

फूल कली पंछी तितली बन सकती थी
ख़्वाब में अपने मैं कुछ भी बन सकती थी

आँखो में पानी और जिस्‍म है मिट्टी का
मैं भी शायद एक नदी बन सकती थी

इक किरदार इक नाम ज़रूरी क्यूँ हो जब
आज कोई मैं कल कोई बन सकती थी

रक़्स ख़यालों की धुन पर कर पाते तो
जाने कितनी ग़ज़ल नयी बन सकती थी

उसकी आँखों का होने की ख़ातिर मैं
बस 'इक ख़्वाब सी लड़की' ही बन सकती थी

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26 APR 2019 AT 17:02

// ग़ज़ल //
"हमारी आँख का काजल"
(Read in caption)

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23 AUG 2022 AT 18:35

ज़हर से ज़हर कटे काँटे से किरची निकले
दे नया दर्द कि ये टीस पुरानी निकले

ज़िंदगी यूँ तो नया लफ़्ज़ नहीं है लेकिन
वक़्त के साथ नए इसके म'आनी निकले

क्यूँ कोई कोख जो सूनी हो वो शर्मिंदा हो
क्या ज़रूरी है कि हर सीप से मोती निकले

इश्क़ की झील में उतरो तो सँभल कर उतरो
ऐन मुमकिन है ये उम्मीद से गहरी निकले

एक वो शख़्स जिसे दिल ने ख़ुदा जाना हो
सोचिए क्या हो अगर वो भी फ़रेबी निकले

छटपटाते हैं उदासी से निकलने को मगर
क़ैद-ए-सय्याद से कैसे कोई पँछी निकले

वो तरीक़ा मुझे मरने का बताओ जिस से
ख़ुदकुशी भी न लगे जान भी जल्दी निकले

- Vibha Jain
#ekkhwabsiladki

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3 SEP 2019 AT 17:47

ज़र्द चेहरे पे ख़ुश-लिबास आँखें
ख़ूब हँसती हैं महव-ए-यास आँखें

रूप धर लें कभी ये दरिया का
तो कभी ओढ़ लेती प्यास आँखें

ईद का चाँद है तू और तेरी
राह तकती हैं बारह-मास आँखें

रूह को रूह से हो कैसे इश्क़
न तो दिल है न उसके पास आँखें

हर नज़र को नसीब क्यूँ हों हम
हमको देखें वही दो ख़ास आँखें

ज़ह्न करता है तेरे गिर्द तवाफ़
जब न हों तेरे आस-पास आँखें

मेरी आँखों में सिर्फ़ तेरे ख़्वाब
'ख़्वाब' की मुंतज़िर पचास आँखें

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