लफ्जों में खता रख, गले का हार नहीं हूं.
जीत की तलब हूं, किसी का यार नहीं हूं
उम्दा गजब शायरी ये हुनर कहां किसी का.
ये लफ्ज सब रहमत के, मैं कोई सार नहीं हूं.
जमीर से ईमां तक बहुत सौदे किये तुमने
सौदा मैं भी हो जाऊं गर कोई बाजार नहीं हूं.
फूल लेके मिलने जुलने मत आया कर दोस्त .
ज़िन्दा हूं अभी बशर मरा कोई मजार नहीं हूं.
शादी इश्क की गम मोहब्बत का नाच उठा .
शौक से नाचता हूं पर कोई नाचार नहीं हूं.
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