हम दोनों हैं, अलग-अलग
हम दोनों हैं, जुदा-जुदा
कोई आखँ उठाके तो देखे
कर देंगे उसे दफ़ा-दफ़ा.....-
मोहब्बत और महबूब दोनों
उस खुदा की इनायत हैं
हर किसी के हिस्से में नहीं
झुककर सजदा किया करो..-
कच्ची उम्र की मोहब्बत
जनाब कच्ची ही होती है
चाहते हो परिपक्व इश्क
तो उम्र पकने दो 'साहेब'-
लगा लो अंकुश,अपने ख़्वाबों पे
के चैन किसी, ओर का जाता है
याद तुम करते हो, अपने दिल में
बे-चैन होती धड़कन,हमारे दिल में-
'पूनाम' की रात में ,'चकोर'
भूल जाता है 'हदों' को
मिलने की चाह में 'चाँद' से,
पर ये 'फ़रियाद' है,मेरी
'संदीप' तुम रहना हमेशा
अपनी 'सीमा' में .........
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चाँद सितारे, पहाड़ों के नज़ारे
समंदर के किनारे ख़ूबसूरत है
सुना, हर शायर की क़लम से
मुझे नज़र आते हो तुम,क़सम..
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लोग कहते हैं सीख लो
हुनर चुप रहने का
अब क्या कहें "संदीप"
ऐब है हमें साफ-साफ़
कहने का.....
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शिक्षित होने में और संस्कारी होने में,
बस इतना सा अन्तर है।
संस्कारी व्यक्ति ,औरत को
केवल "जिस्म "नहीं समझता....
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आदत कुछ इस क़दर,
सनम हो गई है, तेरी
कुछ पल की कमी भी
शमशान सी लगती है-
ये कैसी अदा है 'संदीप' उसकी
अब तक समझ न पाया हूँ.....
'कुछ भी' कहती, तो सब कुछ है
कहती 'स्टॉप' तो क्या समझूँ .....-