काश हम भी पत्थर के होते कुछ नहीं करते, फिर भी लोग हमें पूजते ना किसी से उम्मीद करते और ना ही किसी की उम्मीद को तोड़ते फिर भी सब की आखिरी उम्मीद हम ही होते
कुछ जज्बात अनजाने में बाहर आजाते है सम्भलेगें नही उनसे वो इसलिए हम चाह कर भी उनहे बता नही पाते है और फिर क्या जनाब,,,,, जज्बात हमारे आँसू बन कर बह जाते है