जिस्म की लज्जतें, इश्क़ की सलाहियतें
पढ़ ही लेती है सारी वो तुम्हारी तर्बियतें
हुस्न तारी नहीं करती इश्क़ मुकम्मल में
उसकी देह से भी लिपटी हैं सारी आयतें-
11 SEP 2019 AT 21:24
4 JUN 2017 AT 8:07
मैं पुरुष के देह में हूँ
तुम स्त्री के देह में
इसी कारण संदेह हो रहा
तुमको मेरे स्नेह में-
9 JAN 2019 AT 19:10
कागज़ में उतरकर
बेचैन शब्दों को
चैन आता है।
लिखनी है कविता
बेचैन देह पर तेरे।-
29 SEP 2019 AT 12:51
जल भी तो जलता होगा, तेरी देह के ताप से
किया होगा तुमने भी तो, प्रेम अपने आप से-
9 FEB 2020 AT 2:00
महक आ रही है तेरी देह के गुलाब से
नहा के आ रही हो जैसे शराब से
सच में तुझे रचा है ऊपरवाले ने
या निकल कर आ रही हो किसी किताब से?-
30 SEP 2019 AT 14:14
लगता है आज मौसम खुशनुमा है।
हुई नहीं बारिश फिर भी वो भीग रही है।-
17 MAY 2020 AT 17:29
वो बड़ी दुविधा में थी।
क्या वो ख़ुद को आत्मनिर्भर कहे, उसकी जीविका तो उसकी देह पर निर्भर थी।-