काश! कभी ऐसा भी हो
मेरे मर जाने के बाद
कोई कहीं
मेरे लिक्खे अश'आर पढ़े
मेरी नज़्मों से मेरी ग़ज़लों से
मेरी सोच की तह तक जा पहुँचे
मेरी रूह को जाने
और अपने ज़ेहन में
मेरी इक तस्वीर उकेरे
और ये सोचे
"मुमकिन है मुझे इस से मुहब्बत हो जाती"-
न नींदें हैं न ख़्वाब हैं न आप दस्तियाब हैं
इन आँखों के नसीब में अज़ाब ही अज़ाब हैं
ख़ुलूस की तलाश में हैं ऐसे मोड़ पर जहाँ
मैं भी शिकस्त-याब हूँ, वो भी शिकस्त-याब हैं
अगरचे सहरा-ए-वफ़ा में तश्ना-लब हैं सब के सब
मगर करें तो क्या करें कि हर तरफ़ सराब हैं
अमानतें किसी की हैं हमारे पास अब जो ये
शिकस्ता दिल, चुभन, घुटन, उदासी, इज़्तिराब हैं
न हो सके ख़ुशी में ख़ुश न ग़म में ग़म-ज़दा हुए
हमारी ज़िंदगी के कुछ अलग थलग हिसाब हैं
कहानियाँ, मुसव्वरी, किताबें, फ़िल्म, शायरी
सुकून-ए-दिल की आस में खँगाले सब ये बाब हैं
कभी बड़े ही नाज़ से नज़र में रखते थे जिन्हें
हमीं तुम्हारी आँखों के वो कम-नसीब ख़्वाब हैं-
कोई गाँठ खोल दो इन उलझे रिश्तों की
मेरी ज़िंदगी का, ये दम घोंट रही हैं-
फूल कली पंछी तितली बन सकती थी
ख़ुद को मिटा कर मैं कुछ भी बन सकती थी
आँखो में पानी और जिस्म है मिट्टी का
मैं भी शायद एक नदी बन सकती थी-
गुज़र रही है बिना बात ज़िंदगी उनकी
जो अब तलक रहे अनजान तेरी ख़ुशबू से
सियाह रात में सूरज तुलूअ हो गोया
मिरा ये दिल है दरख़्शान तेरी ख़ुशबू से
जो 'ख़्वाब' दफ़्न थे आँखों की क़ब्र में अब तक
तड़प उठे हैं वो बेजान तेरी ख़ुशबू से
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ऐ मेरे रंगरेज़ मुझ पे इतनी इनायत कर दे ना
मेरे कोरे दुपट्टे को तू रंगो से अपने भर दे ना-
ग़मों में हँस रही हूँ मैं
मेरा तुम क़हक़हा सोचो
चलो कर लें हिसाब-ए-इश्क़
दिया क्या, क्या लिया सोचो
हमारा खूबसूरत जिस्म
है मिट्टी और क्या सोचो
किसी का सच किसी का झूठ
अब उसने क्या कहा सोचो
ग़ज़लगोई करेंगे 'ख़्वाब'
ये सोचा किस ने था सोचो-