कौन हूँ इनमें से "मै",,
अब ये तलाशती!!
दोनो मे ही हूँ "मै",,
ये क्यो मानती नही!!
कभी हद से ज्यादा सहज,,
तो कभी हैवान सी!!
कौन सा मेरा अस्तित्व,,
हैरान सी हो गई!!
इसी तरह "खुद" का "अस्तित्व" खोजती!!
"(गुमशुदा सी एक लड़की)"-
"खामोशी" से भरा हुआ,,
"दिल" मेरा !!
तिल तिल "मरता" है,,
ये ,,,हर "रोज़"!!
न किसी के "प्रेम" की,,
""आरजू""इसे!!
न "अपनो" के साथ की,,
""चाहत"" इसे !!
है तो बस ""आँखो"मे,,
कुछ ""नीर"" बसे ,,
जो न ही ""छलकते""और न ही ""रमते""!!-
""पहचानने""जब चली,,
अपना ही ""अक्स""!!
कुछ ""नये चेहरे"" ,,
""खुद"" के और भी "मिले"!!
हरबार बारम्बार,,
नई ""उलझने"" उत्पन्न होती रही!!
जो ""तलाशती"" खुद को तो,,,
और भी ""उलझती"" गई!!
न मिल रही क्यों,,कहाँ कब कैद हुई ,,
ऐसे ही तमाम प्रश्न लिए !!
""(गुमशुदा सी एक लड़की)"""-
ख्यालों की उधेड़बुन,,
कुछ इस प्रकार हो चली!!
कानो मे न जाने कैसी,,
आवाजे गूंजने लगी!!
कभी साजिशे भरी,,
कभी हताश सी!!
कैसे बयां करुँ,,
कुछ समझ न आ रहा,,
मन ही मन चीखती,,तिलमिलाती सी मै!!
जो करुँ किसी से बात भी,,
ऐसा प्रतीत होता,,
शक्क भरी निगाहों से देखे है ,
सब मुझे!!!!!
""कल्पित आवाजो से सहमी सी""
""(एक गुमशुदा सी लड़की)""-
"शोर" उठ रहा "हृदय" मे,,
"काया""मेरी "छिन" रही,,
"हावी" हो रहा ""मुझमे"",,
न जाने कौन सा ""शख्स""!!
"ख्यालो की" ""उधेड़बुन"",,
कुछ इस प्रकार हो चली,,
""सच"" और ""झूठ"" मे भी,,
न ""फर्क"" कर पा रही!!
""महसूस"" इस कदर हो रहा,,
""मस्तिष्क""तो कार्य कर रहा,,
पर ""इन्द्रियाँ""बस मे नहीं!!
मूर्त और अमूर्त की उधेड़बुन मे,,
उलझी हुई!!!
""(एक गुमशुदा सी लड़की)""-
खुद से खुद ही जुदा हूँ,,
न जाने क्यों खफ़ा हूँ!
समझ न आए दिल की रंजिशे,,
न जाने किस कश्मकश में फंसी हूँ!!
कर दे कभी तू भी करम,,
बस एक यही आस हैं दिल की!
अपने तो न हुए अपने अब तेरी ही तलाश हैं,,
जो मिल जाए तू फिर मुझको किसकी तलाश हैं!!
जागी हुई अंखियों का अब एक तू ही सपना है,,
दुनिया की फिक्र नहीं अब एक तू ही मेरा अपना है!!-
हुई ""गुमसुम"",
""हृदय""में हुआ ""विस्फोट"",,,
कुछ ""नकारात्मक"" विचार उठे !!
दिखा जब खुद का ""साया"",,
""भय"" से ""सिमट""गई !!
""क्या"" हुआ ,"कब" हुआ,,
""क्यों""तू ऐसी हुई!!
ऐसे तमाम ""प्रश्न""लिए,,,
""गुमशुदा""सी एक ""लड़की""!!-
एक आलौकिक किरण जगी,,
चिङिया चहचहाने लगी ,,
खींचती मुझे ये लगी पुकारन सीे लगी!
उठ खङी हुई बिस्तर से यूँ ,,
जैसे कोई पुकारता हो!
भागने लगी मे,बदन मे ऐठन सी हो गई,,
पर समझ न आ रहा क्यूँ मै ऐसा कर रही_!!!
खुद_को_समझने_का_प्रयास_करती_हुई ,,
(एक गुमशुदा सी लड़की)-
हूँ मै "कहाँ"?
"पता"नहीं!
है कोई "अपना"?
"जानूँ"नहीं!!
क्यूँ "ख़फा" है "साया"?
"मालूम" नहीं!!
"वक्त","पल","जिन्दगी" थमी है क्यूँ??
"जानूँ" नहीं!!
"मै" खोई कहाँ?
"मिलती" नहीं!!-
प्रेम है क्या ?
बस एक "चाहत"!
चाहत है क्या?
बस एक "जरुरत"!
बस इसी से जुङे है,,
अपनो के "रिश्ते"!!
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