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🌿जहां बचपन की हँसी हवा में गूंजती है,
जहां कोई बिना कहे पानी का गिलास बढ़ा दे,
जहां दो आँखें बात किए बगैर समझ जाएं —
वहीँ कहीं, चुपचाप, प्रभु खिलखिलाते हैं 🌿-
न हिज्र की ताबी है, न वस्ल की आरज़ू !!
इश्क़ की रूहानी चौखट पर बैठा है दिल!-
नाम से उसके अब पैग़ाम नहीं आते…
पर दिल,
उसी एक नाम की समाधि बन गया है !!!-
तुम कहते हो कि इत्मीनान से पढ़ोगे मेरी कविताएँ,
मैं कहती हूँ ,,
मैं तो अपने अक्षरों में
अपना समूचा शरीर सजा चुकी हूँ ,
ताकि तुम मुझे पढ़ते नहीं ,
छूते जाओ ,स्पर्श के उस विज्ञान से ,
जो केवल प्रेमियों को आता है !!
जब तुम्हारा मन थक जाएगा
संघर्षों की आवाज़ों से,
मैं अपनी शिराओं में ,
शब्दों की एक ठंडी नदी बहा दूँगी
जिसमें तुम अपनी उँगलियाँ डुबोकर
अपनी ही थकान को मिटा सको!! 💕-
उनका जाना कोई क्षण नहीं था,
बल्कि एक युग का अंत था —
मेरी स्मृति में।।
पापा कभी बोले नहीं “मैं हूँ”,
पर जब नहीं रहे — तब हर जगह
उनकी कमी बोलती है ॥
🙂
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प्रेम,तर्क से परे नहीं है !!!!
बल्कि वो एक उच्च गणित है —
जहाँ भावनाएँ सूत्रों में नहीं,
स्पंदनों में हल होती हैं !!!!
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"मैं कोई उपनिषद नहीं..."
(यथार्थ प्रेम की एक स्वीकारोक्ति)
सुनिए अनुरागी,
मैं आपके प्रेम में कोई उपनिषद नहीं बनना चाहती —
न प्रतीक्षा की देवी, न वह सूक्ष्म दीया
जो बिना किसी वातास के भी मौन जलता रहे..
मैं चाहती हूँ कि आप लौटें...
हाँ, सीधे-सपाट, बिना किसी दर्शन के बोझिल संकेत के _
जैसे क्षुधा में कोई रोटी स्मरण होती है,
या शीत में किसी पुराने शॉल की गरिमा !!!-