शोकमग्न क्रोधबद्ध देखो तुम ज़रा तुम्हारा ही तो मै काल हूं,
हंस तेरी लिप्त मुझमें, रूप हरी का विकराल हूं,
फट पड़ा जिसपे तीसरा चक्षु, महाकाल का वो ललाट हूं,
नहीं रुका जो गंगा सा, प्रवाह वो विशाल हूं,
शोकमग्न क्रोधबद्ध देखो तुम ज़रा तुम्हारा ही तो मै काल हूं,
कर लिया जो तुमने करना था, अपार कष्ट सेह चुका,
शोक मेरा ढल रहा, अब क्रोध मेरा बढ़ चुका,
सृष्टि में जो थम गया, वो लम्हा मैं अब हाल हूं,
जो रह गया था मन में कहीं, चुभन सरीखा एक मलाल हूं,
शोकमग्न क्रोधबद्ध देखो तुम ज़रा तुम्हारा ही तो मै काल हूं,
दुखों की रैन अब ढल चुकी, सांस सृष्टि की थम चुकी,
वचनबद्ध काल सी, अपार शक्ति छा चुकी,
नैन रक्त, आलस्य नष्ट, जुनून से निहाल हूं,
समय के चक्र तोड़, विजयबद्ध चल पड़ा वो पार्थ हूं,
रोकोगे कैसे अब तुम मुझे, एक नहीं,
असंख्य कष्ट से तुम्हारा बुना ही तो मै जाल हूं,
शोकमग्न क्रोधबद्ध देखो तुम ज़रा तुम्हारा ही तो मै काल हूं।
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