इल्म न था मुझे,
उसने कुछ यूं रूबरू करवाया कि मैं खुद तो कांपी पर सबक कईयों को सिखाया,
हाँ जान जान कहने वाले ने आज मेरे जान पर बना दी!
इज्ज़त मेरी बेच कर उसे कौनसा नफा हुआ है,
मुझे अनजान ही रहना है
मैं लम्हों को बटोर रही थी वो कैद कर रहा था,
मैं आहो में मचल रही थीं वो खच खच कर रहा था!
कहता था दूरी सहन नही कर पाता तुझसे,
मैं भी मंद मुस्कुरा दी झूठ पे,
बस फिर होना क्या था
कई नज़रो से उसने मेरी दूरी मिटा दी,
कईयों की बेरन रात की संगिनी मुझे बना दिया,
जान जान कहने वाले ने मेरी जान पर बना दी!
मुस्कुराहट पर न जाना तुम
अपनी बेवकूफी पे हँसती हूँ,
कमजोर नही थी कभी पर उसकी पुरजोर कोशिशो ने क्या से क्या बना दिया!
याद है वो दिन भी कदम उसके थे माथा मेरा था,
सिसकियों में शायद समझा नहीं वो,
भीख उसने दी ही नही मुझें,
अपना कहकर दरिंदो जैसा हक जताया है उसने,
जान जान कहने वाले ने मेरी जान पर बना दी !
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