इज्जत
अक्सर मनुष्य इज्जत के मोह के चकरवु में पास कर अकेला और असहाय बान जाता हैं और उसके पछात उसी चकरवु में उसका अंत निश्चित हैं अगर वो इस भरम को एहसास नहीं कर पाता की उसे जीस इज्जत को वो सहेज कर रखा रहा था इसलिए की लोग उसको महान माने , आज उसी इज्जत के पछात ही लोग उसको अकेला छोड़ चुके हैं।
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