कपड़े छोटे वो पहन रही है,
नियत नंगी तेरी हो रही है।
अपने संस्कार और परंपरा की इतनी दुहाई देते हो,और
अपनी बेटी की उम्र की लड़कियों पर आँखें सेकते हो।
बातें तो ऐसे करते हो,जैसे कोई गुनाह होने से रोक रहे हो,
ख़बर हमें भी है,तुम इंसान की शक़्ल में दरिंदे घूम रहे हो।
निहार रहे हो क्यों इतना किसी और के घर की लक्ष्मी को,
क्या घर जाकर अपनी बहन बेटियों के साथ यही सलूक करते हो?
आखिर क्यों शराफ़त की पहचान उनके पहनावे से करते हो,
दुनिया के मर्जी से कपड़े पहनने का,क्या कोई कानून बना रहे हो?
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