क्या ये इतना मुश्किल था? सहायता को आगे आना।
थोड़ा सा मानव हो जाना इक पीड़ित पर दया दिखाना।
मीलों तक था नहीं बचा इंसान को कोई उस बस्ती में
प्रलय जो आए तो आ जाए महाकाल की नगरी में।
हे! महाकाल क्या भला करोगे तुम ऐसे इंसानों का?
इससे बेहतर होता होगा नगर पिशाचों हैवानों का।
ये दुनियां क्या जीने लायक जहां नहीं कुछ मानवता है?
जाम्बी से हैं लोग यहां इनको फ़र्क कहां पड़ता है?
माफ़ करो हे! बच्ची मुझको मैं भी हूं तेरी अपराधी।
ऐसी दुनिया में रहती हूं इन सबके कर्मों की भागी।
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29 SEP 2023 AT 11:40