सच कहूँ तो ए-जिंदगी मुझे अय्यारी नही आती
करूँ बेवफाई कैसे मुझे गद्दारी नही आती
मुहब्बत की रस्में निभा तो लूँ लेकिन
वजह ये रही की मेरी खुद्दारी नहीं जाती
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लड़ तो लेते किस्मत से भी तेरे लिए
पर उस खुदा से कैसी जंग
जिसने तेरा वजूद बनाया है
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Wo mukhtalif ehsaas tha jb tumse muhabbat hui thi
Aaj fir waise hi ehsaas hai
Shayd es dafa tumse nafrat ho rahi h-
तू खफा है अगर तो अब तेरी नाराजगी भी मंजूर है
तेरी खुदर्गजी अब नही
अब मेरी खुद-अहमीयती मायने रखती है ।।
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कभी हमें भी मुहब्बत पर
यक़ीन-व-गुमान हुआ करता था
और फिर इक रोज़ उनसे मुलाकात हो गई।।-
तू मिटता है तू बनता है
हर इक शायरी मे कुछ इस तरह जैसे मुहब्बत नही
हो रेत का कोई मकां.. समुद्र के मुहाने पे-
Ye nahi कहेंगे ki बंदगी karte hain..
ऐसा v nahi है ki दिल्लगी karte hain ..
ऐ वतन tu ईश्क़ hai मेरा..
wafa v tujhse or
tere baad hi kisi se v मुहब्बत करते हैं-
मायने ही बदल दिए तूने मेरे लिए
मुहब्बत के अलफाज के
मेरी सादगी से इश्क़ है तूझे और तू मेरा साज है
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हमारे ईश्क़ की कहानी पूरी कैसे होती
जब उनकी हथेली में , खुदा ने
मुहब्बत की लकीर ही अधूरी छोड़ दी ।
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खामोश रातों मे यादों का शोर ऐसा होता है
बेरूख उनसे हो कर ।। ईश्क़ उनके ही ख्वाबों मे होता है ।
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