हैं सितारे सब जहां में
पांडव हम पंच प्यारे-
जिसका शब्दकोश नहीं होता है
भाव उसकी परिभाषा होती है
दर्द की भी अपनी भाषा होती है-
यों अमावस की स्याह रात
मेरे ख्वाब में न आया करो।
हो अगर दिल में प्यार-व्यार
तो बेझिझक बताया करो।
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हर रोज रुठते रहते हैं अपने
बस यूँही टुटते रहते हैं सपने।
सोचा तो था लाख मिन्नत से मनाते
परन्तु खुद को खुद में कैसे मिलाते।
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जब मैं और मेरी कागज की कश्ती
बारिश के पानी में बालपन की नादानी थी।
जब मैं और मेरी मकान की किस्त
बारिश के पानी में पचपन की जवानी है।-
पुरखों के अहाते एक दरख़्त सोया है
आज सुर्खियां में अहाते का तख्त है।-
जो बाह टोह रहा पाने की
उसे तलब कहाँ उड़ जाने की।1।
अभी तलक जो मिला नहीं
उसे खो देने का डर कैसा।2।
शाख पे बैठा इक परिंदा
उड़ ना पाये सो शर्मिंदा।3।
सोच-सोच व्याकुल हो चला
जब उड़ा नहीं तो गिरना कैसा।4।
जिसने ना चखा आसमानी घाटी को
वो कैसे चूम पाता जमीनी माटी को।5।
उड़ेगा-गिरेगा, गिरेगा-उड़ेगा,उड़-गिरकर
इक रोज जरुर संभलेगा ये परिंदा।6।
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परती से परत हट जाये, थार में अटवी बन जाये।
मैं बादल बन बरस जाऊं, धरा सहित मैं मुस्कुराऊं।
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