"माँ का आँचल"
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ज़िन्दगी ही बीत गयी ज़िन्दगी
तुझ पर ही नज़र रखते रखते
छलक जाता है कभी दर्द यूँ ही
आँसू निकल जाते हँसते हँसते
नहीं सुनता कोई भी दर्द यँहा
थक जाती है जुबाँ कहते कहते
और कब तक दफन रखे घुटन
मर रहे हैं हम इसमे रहते रहते
बस जीना है खुले आसमां में
बहुत हुआ कफ़स सहते सहते
'रूचि' संभल जाती है हर बार
पर थक गयी बिखरते बिखरते-
हमारे चेहरे पर हँसी और दिल में प्यार होता है
पर थोड़ा-थोड़ा तो जानी हर कोई खराब होता है
समझ से परे है शख्सियत मेरी उस शख्स के लिए
जो मुझको जाने बिना ही मेरे खिलाफ होता हैं
यकीनन मैं दिल के करीब रखती हूँ उन लोगो को
जिन लोगो का मेरे प्रति लहजे मैं सबाब होता है
नसीबों और दुआओं में पला होता है वो शख्स
जो रुचि की इन पारखी नजरों में महताब होता है
हमे ऐबोंसे दूर अपने अंदाज में रहने की आदत है
याद है लोगों की गलतियां सबका हिसाब होता है
शख़्तियाँ बर्दाश्त नहीं किसी की माँ बाप के सिवा
अलग बात है जो रुचि के दिल का नवाब होता है
'रूचि' के लिए अजीज है बहुत उसके चाहने वाले
और जलने वालों के लिए मुंह-तोड़ जवाब होता है-
वो आसमां भी ख़ूब फ़फ़क कर रोया होगा आज
उसके दामन से उसका अज़ीज़ सितारा जो टूटा है-
इश्क की गुस्ताखियों को यूँ सरेआम करके
इजहार-ए-इश्क वो खुलेआम करने लगे है
बेताबी बढा देती है ये रंगीन मौसम-ए-बहार
पल पल मदहोशी में आँहे अब भरने लगे है
और सजा कर कुछ हसीन सपने आँखो में
अपने दिल का मिजाज वो बदलने लगे है
एक-एक अहसास अपना मुझ पर खर्च कर
मेरे हर किस्से को गज़लो में उतारने लगे है
जिन्दगी के हर मोड़ पर इंतजार है हमारा
अंधेरे में जैसे वो चाँदनी को बिखेरने लगे है
हर एक कोने में जला रखे है चाहतों के दीये
बनकर रोशनी उस दीपक पर ठहरने लगे है
'रूचि' वो दिल-ए-आईना साफ दिखा देंगे
क्यूंकि महोब्बत में वो आँहे भरने लगे है-
And this
time i didn't
repeated same mistake
to be
overpowered
by my
haunting
inner voice
and fragile
emotions......!!
I choose
to fight
with very depressive
inner battle
that is going
on everytime,
either it will
grow me,
or broke me.....!!-
वादियों से हमने एक संदेशा पँहुचाया है
क्या तुमने अभी वो पैगाम पढ़ा नहीं होगा
और मुझे छूकर तुमतक पँहुचती है हवाएं
क्या इन्होने तुम्हे भी वँहा छूआ नहीं होगा
उन राहों से तो तुम कब का गुजर गये हो
यार तुमने उसका इंतजार किया नहीं होगा
और शायद थक गये हो यादों के सफर में
उन यादों ने तुम्हे सुकून दिया नहीं होगा
देखते ज़रा ठहर कर एक दफा उन राहों में
क्या तुम्हारे हमदम ने तुम्हे पुकारा नहीं होगा
माना की जिक्र हमारा भी बार बार आता है
क्या उसनेभी तुमपर ऐतबार किया नहीं होगा
गुस्ताखियां हर बार माफ की है 'रूचि' की
इतना प्यार तुमने किसी को किया नहीं होगा-
आज एक शख्स से शरारत हो गयी अंजाने मे
फिर पूरा दिन ही गुजार दिया उसको मनाने मे
कह गये कुछ ऐसा जो कभी न कहना था हमें
सवाल-ए-गिरफ्त की रात गुजार दी पछताने में
जगह जगह क्या निशानियों की छाप छोड़ी है
एक उम्र ही गुजार दी उन यादों को मिटाने में
रज़ा-ए-खुदा ही मानी थी मैने जिन्दगी अपनी
माहौल में ढल कर माहिर हो गये गम छुपाने में
क्या खूब रची हरएक नयी शाजिश मेरे खिलाफ
अक्सर सदियां बीत जाती हादसों को भुलाने में
बिखरती 'रूचि' जितनी बार नये सीरे से संवरती
योगदान है उस शख्स का मुझे बेहतर बनाने में-
इस ज़मी पर इंसान को इंसान से हमेशा जलन रहेगी
ये तो दुनिया है ये कब भला किस की सगी रहेगी
क्या करना है शराफ़त का चोला पहन कर हमें
कुछ लोगों की फितरत उनके जैसी घटिया ही रहेगी
और जैसे को तैसा वाला व्यवहार है हमारा जनाब
अपने हुनर के बलबूते उड़ान हमेशा ऊँची ही रहेगी
बोओगे अगर ख़ुद के लिये काँटे तो फूल थोड़ी उगेंगे
कुछ नकाबपोशों की शक़्ल नक़ाब में ही ढकी रहेगी
सुना है शहर में हर ओर कुतों का अोहदा बढ़ने लगा है
शेर अकेला ही काफ़ी है उसकी छवि ही काफी रहेगी
गुरूर मत करना कभी भी अपनी नादानी पर "रूचि"
कुछ आस्तीन के सांपों की जगह तो सुरक्षित रहेगी-
Sometimes you
have to be 'STRONG',
Stop being 'SCARED'
and just go with
Your own choice.
Either it will make,
or give you a lesson.
That's journey of 'LIFE'......!!-