मुकम्मल
तलाश अब,
वहाँ हो
जहाँ
सोच मिलती हो,
पसंद नहीं...!!!
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सही और गलत के पैमाने में
न मापे जाएं,
इसलिए
खामोश हैं कुछ रिश्ते
जिनमें सुगबुगाहट है,कुछ खट्टे-मीठे
एहसासों की...!!!
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‘नदियां’
आज अपनी
बेबसी बता रहीं थीं
रूठी थीं ‘समंदर’ से,
फिर भी
‘समंदर’ में
मिलीं जा रहीं थीं।-
सुकून था, हर उस पल में
जिसमे तुम थे,
तुम्हारी यादें नहीं,
बेचैनी है
अब हर उस पल में,
जिसमें महज़ तुम्हारी यादें हैं
तुम नहीं...!!!-
निश्चितता
का
सबसे
अच्छा उदाहरण
प्रकृति है,
और
अनिश्चितता का
मनुष्य।
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कुछ
रिश्तों के
नाम नहीं होते,
जैसे
कुछ
सवालों के
जवाब नहीं होते...!!!-
लोग मिलते हैं,
फिर बिछड़ जाते हैं,
फिर मिलते हैं
और फिर बिछड़ जाते हैं
इस तरह
लोगों को लोगों का साथ
तो मिल जाता है,
लेकिन
तन्हा रह जाती हैं ,ये राहें,
जो अब भी ‘राह’ देख रहीं हैं
किसी राह का
किसी के साथ का।
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