वक्त की धार
सितारों से चाँद का पता यूँ पूछते है,
पहचान बताने से अनजान जिस तरह हिचकते है
वक्त की धार पर एक महल यूँ बनाया था,
अपनों को जैसे.. अपना बनाना चाहा था
रेत की सिलवटों से तक़दीर पर लिखना चाहा था
कुछ भूल हम चुके थे, कुछ भूला याद आया था
कुछ यादें .. बारिश की, आँखों में झलकती हैं
कुछ यादें ..बारिश सी, आँखों से बरसती हैं
ज़रूरी था, शायद.. वक्त से पहले यूँ बिछड़ना..
सवेरा होने से पहले, तुम्हें वक्त का होते देखना
©️ मनीष झा
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