हे स्त्री से पूजित समाज
तू कब जागेगा आज जाग।
जो करुणामयी हैं उस नारी को
मेरा प्रणाम है उस प्रतिमा को
जो है समाज में पूर्ण योग्य
जो है दम में सबसे योग्य
इस कुंठित समाज को जगाना है
बस पार उसी को लगाना है
है समर्पित मेरा दृष्टिकोण
जिसमें है सूर्य और सोम
जिससे अनुसुइया और सावित्री है
जिससे संतृप्त मेरी तृप्ति है
तुझको प्रणाम हे नारी शक्ति
तुझसे ही हूं मैं और सृष्टि।
Happy women's day
Vivek Srivastav-
जीवन के पर्दे पर हम तुम खेल रहे हैं
कूजो़कजा़ के रंग सब उड़ेल रहे हैं
प्रेम का वातावरण है क्या मीठा एहसास है
तेरे इत्र से मैं सुगंधित हूं जब से तू मेरे पास है
यह सुगंध यह मादकता अब देर तलक रह जाएगी
और देर तलक तक साथ तेरा सारी दुनिया को जलाएगी
Vivek Srivastav-
तेरे बिना यह हृदय निरंतर अत्यधिक विचलित हो चला है
तेरे बिना मेरे मन की बिरहा हवा के रुख बह चला है
तेरे बिना यह बादल घटाएं और यह बारिश बेमोल सी कला है
यह मानसून मेरे हृदय का तुझ को सूचित करने चला है।
Vivek Srivastav-
कब तक बोलो सीता देगी अग्नि परीक्षा
कब तक वह ना जी सकेगी लेकर अपनी इच्छा।
कब तक मीरा को विष का प्याला पीना होगा
और कब तक राधा को बिरहा में जलना होगा।
कब तक द्रोपदी का मान ना रखा जाएगा
और कब तक औरत का स्वाभिमान लड़खड़ाएगा।
कब तक अहिल्या पत्थर बन अभिशाप सहेगी।
और कब तक पद्मिनी अग्नि में यूं ही जलेगी।
कब तक स्त्री के आत्म सम्मान की लड़ाई चलेगी
और कब तक यह रूढिवाद के श्राप में जलेगी।
Vivek Srivastav-
“La douleur est plus essentielle que le bonheur A Writer”. Means
“Pain is more essential than Happiness for A Writer”.-
वह जो घर में एक अकेली औरत है
उससे ही इस घर की खुशियां जीवित है।
वह घर की खुशियों की खातिर दिन रात एक कर देती है
और उसके बदले कुछ भी ना हमसे उम्मीद वो करती है।
उम्मीद की बातें क्या बोलूं बस प्यार चाहती है हमसे और अपने जीवन में थोड़े पल के दुलार चाहती है हमसे।
यह इंसानी मन समझ नहीं पाता उसकी इस इच्छा को और दिन-रात बढ़ाएं जाता है उसके दिल की प्रतीक्षा को।
दिन-रात समर्पित होकर भी वह कुछ भी नहीं पाती है और उस बड़े से घर में वह और अकेली रह जाती है ।
Vivek Srivastav-
मैं एक पुष्प रात रानी और तू है मेरा प्रभात,
तुझसे मिलने को तड़प रही क्या तुझको यह है ज्ञात। मेरी सुगंध से रात्रि में महके है यह धरती और वह आकाश,
पर तुझको क्या तू तो खुश है अपने संग ले प्रकाश।
जब प्रातःकाल आ जाता है मेरी आंखें तुझको देखा करती हैं,
पर जब तू आ जाता है तब मेरी आत्मा मुझसे बिछड़ा करती है।
तेरा आना और मेरा जाना ये ही कटु सत्य है
पर वह कुछ पल का मिलना ही मेरे लिए अमर्त्य है।
Vivek Srivastav-
"Dry Eyes" of a Woman who is breaking Stones in front of me.
There is no tears.
There is no fears.
why? Because she doesn't have any expectations from government.
She knows whenever I don't work, I don't get food.
But watching the situation of her, I couldn't stop my tears.
Vivek Srivastav-
जिंदगी कहां मेहरबान है
अरे मौत तो यूं ही बदनाम है।
तमस में हरदम गरीबों का मकान है
और यह मेहरबानियां तो अमीरों का काम है।
जिंदगी कहां मेहरबान है
अरे मौत तो यूं ही बदनाम है।
वह मिट्टी के घर वह खुले रोशनदान है
अब तो मुश्किल में उनकी जान है।
जिंदगी कहां मेहरबान है
अरे मौत तो यूं ही बदनाम है।
Vivek Srivastav-
तू एक कल्पित पुष्प रातरानी, तेरे अधरों में शब सा पानी।
तेरे बदन की खुशबू है रूहानी, तुमसे ही मुकम्मल मेरी कहानी।
यह केश तेरे काले काले जैसे मेघ बने उस दूर गगन में,
तू इतरा के जब मुस्काए तो फूल खिले हर ओर चमन में।
तेरी चाल मिजाजड़ देख के मैं खो जाऊं सतरंगी स्वप्न में,
तेरे नैन शराबी गाल गुलाबी आग लगाएं है अगन अगन में।
तू साथ रहे तो ऐसा लगे कि कोई कमी नहीं जीवन में,
और साथ तेरे मन पागल होकर गोते लगाए नील गगन में।
Vivek Srivastav-