रंजिश-ऐ-ज़िन्दगी मौत की तलबग़ार हो गयी
बिलखते इस मासूम की दुनिया बेज़ार हो गयी
ना दुआओं ने असर किया ना दवाएं काम आयी
एक मर्ज से हार कर मानवता शर्मसार हो गयी
वो बैठा रहा अपनों की राहें तकते अब तो हद्द पार हो गयी
जो वादा करते थे साथ निभाने का,
आज उन्ही की मौत से हार हो गयी
जाने कैसे समझायेगा अब वो बेबस अपने अंतर्मंन को
क्या उसकी छोटी सी ज़िन्दगी,
किसी साज़िश का शिकार हो गयी ?
खुशियों से भरी वो झोली दुःख का अंबार हो गयी
जो मिलती थी कभी खुली हवाओं में,
आज महज़ व्यापार हो गयी
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It isn't worthwhile, if you didn't read it,
Your mind gotta be lazy, unless you feed it.
Put your emotions into words, just knead it,
Let the pen do some magic, you gotta bleed it.
I unshackled my inner self, kinda freed it,
Life turned topsy turvy, as if someone keyed it.
Now, I gotta discern the essence of what's called divine,
It's futile to brood over something, which isn't meant to be mine.
Life could be as tormenting as hell, or pious as a shrine,
It's you to embrace whatever comes your way, being benign.
Subjected to societal norms, you gotta defy the nemesis & shine,
Either you corroborate to what I say, or else choose to whine.
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तू दस्तक़ जो दे, तो मानो बिन मौसम बरसात आती है
जैसे हर साँवली शाम के बाद, हसीं सी रात आती है
लहरों सी रवानी है तुझ में, जो साहिल तक साथ आती है
तू चाहे मीलों दूर भी हो, हर ज़िक्र में तेरी ही बात आती है
हर शब मेरी ख़्वाबों में, तेरी यादों की बारात आती है
तेरे नाम से सजती है महफ़िल मेरी, तेरे बाद ही क़ायनात आती है
तू इत्र सी घुलकर मेरी रूह में, हवाओं संग साथ आती है
बस इतनी सी है मेरे इश्क़ की दास्ताँ, तेरे आने से शब्-ऐ-हयात आती है-
I don't wanna be the perfect guy for you,
Why for God's sake, I dip myself in your hue ?
Your persona to me, came out of the blue,
I would've never fell for you, only if I knew.
Seldom corroborating my views, skeptical of what I do,
You barely stood by my side, that's what holds true.
With every passing second, running out of any clue,
You just can't fathom, what I have been through.
Reminiscing how we crossed paths, the day I never rue,
Now, someone not like you is what I look for, as you bid adieu !-
#100poemsfor100days
Gracious to YQ for letting me spill the ink,
It's been 2 years, somehow passing in a blink,
Numerous drafts & hundreds of poems in sync,
Still there's pretty much left, as to what I think.
Congrats team for making it to the 4th year,
Let's savour this treat, you deserve a 3 cheers,
My 2 years have been pre-eminent, YQ being near,
I've all the reasons to get Premium today, thank you dear !
It's my prerogative to show some reverence now,
I'm indebted to Harsh Snehanshu, taking a bow.🙌
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कि एक दफ़ा हमारे इश्क़ में भी वो मुकाम आया
जब आँखों में तस्वीर तेरी और जुबां पर तेरा नाम आया
हवा के झोकों के साथ, तेरा उड़ता एक पैग़ाम आया
जो मिल ना सके तो गम मत करना, सोचना एक ख़ूबसूरत आयाम आया
ख्वाइशों को जैसे पर मिल गए, ये ख़त जिस शाम आया
वो रात तारों की चादर तले कटी, पर दिल को ना आराम आया
मेरे इश्क़ के शहर में, बस एक तेरा ही मकान आया
गर हारा भी तो क्या ! मेरा दिल ? चलो किसी के तो काम आया
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क्या याद है वो रात, जब आसमान की चादर तले सोते थे हम
आज खुद से ही अजनबी हैं, कल तक सबके अज़ीज़ होते थे हम
कभी हसते थे संग मिल कर, और साथ में ही रोते थे हम
तब रिश्तों की बानगी में मिलावट नहीं थी ज़नाब ! जज़्बात पिरोते थे हम
अब बाँट दिया है किश्तों में, कल तक जो पूरा अपना था
खुशियाँ हमने ऋण पर ली हों, मानो जैसे एक सपना था
सर पर छत का एहतियाज़ ही क्या ! जब सूरज में ही तपना था
इस दुनिया का फिर मोह ही क्या ? जब राम नाम ही जपना था
वो कहते हैं की बिकता अब, अपनापन अब दुकानों में
दुःख पहले बाटतें थे हम सब, अब मिटता बस मयख़ानों में
ये सृष्टि का क्या हाल किया ! अब सिमटी बस अरमानों में
बस वो मानुष ही श्रेष्ठ है अब, जो अपना है बेगानों में-
इंतज़ार किया था हमने, पर इस बार नहीं होगा
व्यापार नहीं इश्क़ था वो, यूँ हर बार नहीं होगा
कश्ती किनारे को आ लगी है, दिल उस पार नहीं होगा
दफन हो जाएंगे हर राज़ हमारे साथ, पर इज़हार नहीं होगा |
खुली हवाओं संग बह चला हूँ मैं, मंज़िल से अब सरोकार नहीं होगा
बेशक़ रास्ता मुश्क़िल लेना पड़े, पर उस रस्ते तेरा द्वार नहीं होगा
याद है मुझे तुमने कहा था, तरसोगे तुम मेरे बिना !
गर प्यार था वो, तो यकीन मानो ! ये अबकी बार नहीं होगा |
मैंने निभाए है जो वादे किये थे, पर अब कोई करार नहीं होगा
नाराज़गी तो है जायज़ सी, पर जान भी मांगो तो इंकार नहीं होगा
लोगों का क्या है ? कहते हैं कैसे मनाओगे इस दिल को
अज़ी ! दिल बच्चा तो है, बस किसी साज़िश का शिकार नहीं होगा |
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माँ क्या है ? ये महज एक शब्द नहीं एहसास है
ये वो रिश्ता है, जो दुनिया में सबसे ख़ास है
मीलों दूर होकर भी, उसके मातृत्व की छाया पास है
वो गुरूर है मेरा, मेरी हर सुबह की अरदास है
आज बस चंद लम्हे मिलते हैं उसे कुछ बताने के लिए
वो हर बार पूछती है, फुर्सत है क्या इस बार आने के लिए ?
मैं हँस कर टाल देता हूँ ये बात, उसे बहलाने के लिए
क्या बोलूँ ! आऊँगा तो ज़रूर पर वापस फिर जाने के लिए ?
ना जाने कैसे इतना कुछ सह लेती हो तुम
अपने दिल का हाल छुपा कर, कैसे रह लेती हो तुम
मैं चाहूँ भी तो तुझ सा हो नहीं सकता मेरी माँ !
हर बार मेरी नाव की खेवनहार बन कर, संग बह लेती हो तुम-
Today, I'm not gonna signify what Rakshabandhan means
It ameliorates the armored bond, fed in our genes
Quite an open secret, nothing like spilling the beans
Sisters have divinely flair, akin to the queens
Just devoting a poem, won't justify their deeds
As a matter of fact, nothing would suffice their needs
Nurturing you the same way, a sapling emerging out of seeds
The one whom you can count upon, letting her take the leads.
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