भगवान का
सच्चा भक्त
कभी भी
अपनी ओर से
किसी चमत्कार
की इच्छा
नहीं रखता-
चल ना हम उस गांव से आती भीगी मिट्टी की खुश्बू की और चले
ए आझाद हिन्दुस्तानी, चल ना हम अपनी संस्कृति की और चले-
एक छोटी सी कहानी 🙂
इसमें एक लड़के की मां उसके दादा दादी को मिट्टी के बर्तनों में खाना दिया करती थी
एक दिन उन दोनों के गुजर जाने के बाद उसकी मां ने अपने बेटे से कहा
कि बेटा यह मिट्टी के बर्तन बाहर जाकर फेंक दो
अब ये हमारे कोई काम के नहीं है
उस लड़के ने मुस्कुरा कर कहा की मां इन्हें रख लेते हैं यह अब मेरे बहुत काम के हैं
उसकी मां ने कहा क्यों.......??
उस लड़के ने कहा कि आपके बुढ़ापे में
आपकी बहू इन्हीं बर्तनों में आपको खाना देगी
जैसे आप दादा दादी को दिया करती थी ........!!-
मन वसन्त
तन वसन्त
जीवन वसन्त
हो गया
कोई निराला
कोई पंत
कोई दुष्यंत
हो गया
प्रकृति और
संस्कृति से
प्रेम अनंत
हो गया-
हमारे देश में एक प्रचलन यह भी रहा है कि हम प्राचीन धार्मिक ग्रंथों पर तिलक-चंदन चढ़ाते हैं, उनकी पूजा करते हैं, पर उन्हें पढ़ते नहीं हैं। पढ़ते तो संस्कृति के नाम पर जो दुष्प्रचार किया जाता रहा है, वह सम्भव नहीं था।
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"मर्यादा मे रह कर भी खुबसूरत लगा जा सकता है "हुकुम"
उसके लिये छोटे कपडे पहनने की जरूरत नही"-
जब मिशनरी अफ्रीका आए तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास धरती, मिशनरी ने कहा 'हम सब प्रार्थना करें।' हमने प्रार्थना की। आंखें खोली तो पाया कि हमारे हाथ में बाइबिल थीं और भूमि उनके कब्जे में...
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जिनका धर्म परिवर्तन होता है उनका अपना अतीत नष्ट होता है। अपना इतिहास कुचल जाता है। कहना होता है कि हमारे पूर्वजों की संस्कृति अस्तित्व में नहीं है और न ही उनका कोई महत्व है।
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