सोच छोटी !!!
या फ़िर
स्कर्ट छोटी ???-
जिल्द थोड़ी फटी पुरानी थी सो पढ़ी ही न गई बरसों किताब
जो पढ़ी गयी तो सबने कहा पहले लिखी न गई ऐसी किताब-
आपको झोला लेने की जरूरत नही एक कवि होने के लिये। ना ही लंबा कुर्ता पहनने की। कवि आप बाहरी तामझाम के बिना भी हो सकते है। कवि होने के लिए अंदर क्या है वो जरूरी है बाहरी दिखावा नही। ना जाने क्यों खुद कवि होने के बावजूद मुझे ऐसे कवि पसंद नही आते जो ये कवि का रूप धारण करते है। मैं गलत हो सकता हूँ। कपड़ा अपने मन का पहनिए और पहनना भी चाहिए मन का। फिर भी मेरा मन नही मानता इसको। खैर अपना अपना मन।
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वेशभूषा" और "पहनावे" से कुछ नहीं होता
ऐसा लोग बोलते हे,,
पर मैं मानता हूं फर्क पड़ता हैं
वेशभूषा और पहनावे का....
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किसी के वेश - भूषा पर मत मरना।
वाणी,भाषा पर भी मत पिघलना।
पहले कर्म,व्यवहार को परखना।
हर कसौटी पर कसना।
क्योंकि
अमृत की बोतल में ,जहर भर कर,लोग बेच रहे बाजार में।-
मेरे देश में एकता है,
तुम विविधता की न बात करो।
कई मज़हब है ओर उनके कई रंग है,
यहाँ तो झण्डा ही तिरंगा है तुम रंगों की न बात करो।
यहाँ कई नदियां और कई धरातल है और शिखा है,
ये अटूट संगम है जरा भी खण्डन की न बे-बात करो।
यहाँ की वेश-भूषा कई देशी और कई विदेशी,
बस मोहब्बत देखो बेफिजूल ढंगों की न बात करो।
यह एक आयत है मोहब्बत में ढल जाने की,
बस ये वादियां देखों पर यहाँ नफरत न इज़ाद करो।-
✍️"Being away from family means juggling numerous tasks on your own!"
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अविवाहित ज़िंदगी और ऐसे में घर से कोशों दूर हैं हममें से कई तो!
खाना सब्जी बनाने की बारी भी आए तो कभी कभी यह भी बड़ा काम लगता है।
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मुख़्तलिफ़ कामकाज और मसरूफ़ियत, और फिर जल्दबाज़ी भी!
ऐसे में अगर टमाटर भी हो तो इसे सलाद के लिए काटना भी बड़ा काम लगता है।
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पर कई हैं जो कार्यालय और घर दोनों के ही काम ठीक कर लेते हैं।
फिर भी कई ऐसे भी हैं जिन्हें तज़ुर्बा ही नहीं, उन्हें तो काम भी बड़ा काम लगता है।
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पूछा जाता है ये तब तब, घरवालों से फोन पर बात हो जब जब कि
खाना हुआ भी नहीं, पर बताना होता है सही, पर ये बताना भी बड़ा काम लगता है।
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एक ही देश के विभिन्न राज्यों में भोजन के प्रकारों में भी बड़ा फर्क!
चिंता न हो सोचकर, घरवालों को भोजन में ये फर्क बताना भी बड़ा काम लगता है।
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बोलचाल, भाषा, वेशभूषा, खानपान, रहन सहन में एक बड़ा फर्क!
मगर जिम्मेदारियाँ जो होती हैं कन्धों पर कि ये सब जताना भी बड़ा काम लगता है।-
✍️लड़कियों के शालीन वस्त्र🤷
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दुनिया चाहे भड़कीले वस्त्रों की शौकीन ही क्यों न हो!
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हमें तो लड़कियों को शालीन भारतीय वेशभूषा में देखना कुछ ज्यादा पसंद आता है।
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एक बात बताइए आप को स्वादिष्ट खाना देख के मुंह में पानी आता है ना
और अगर भूख हो तो कुछ भी मिले सब ठीक लगता है
वैसे ही जब आप अंगप्रदर्शन करते है तो उत्तेजना उत्पन होती है ,और कुछ मानसिक रोगी होते है उन्हे तो सब सही लगता है
इसलिए पहनावे में सुधार करे तो शायद चीज़े सही हो जाए
और सुंदरता की बखान आज भी हमारे देश में ढके हुए शरीर की ही करते है लोग , बाक़ी का तो पता नही
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वेशभूषा की तरह यहाँ मज़हब बदलते लोग।।
बहा के खून अपनों का सज़दे में झुकते लोग।
ऐसी तेरी ख़ुद्दारी मेरे मौला मैं देखा।
रोते बिछा के लाश हँसते थे जिसपे लोग।।-