एक दिन ज़िन्दगी से शर्त लगाई जीतने की और दौड़ गए। फिर दौड़े तो इतना तेज़ दौड़े कि साँस फूलने लगी पर रुक जाने पर हारने का डर! लेकिन इक रोज़ जब समझ न आया कि जीत के लिए पहुँचना कहाँ था, तो पीछे मुड़े कि ज़िन्दगी को होगी ख़बर.. मग़र न पीछे ज़िन्दगी नज़र आई और न आगे मंज़िल का सफ़र..!
फिर हुआ यूँ कि न पैरों में ज़मीं बची, न जिस्म में रूह..
और इस तरह अपने ग्रह की खोज में अंतरिक्ष में घूमता हुआ, मैं एक खोया हुआ उपग्रह बन गया!-
जिदंगी उस रेस सी हो गई हैं
जिसे हम जीत नही सकते
और ना ही छोड़ सकते हैं-
'रेस'
रेस ज़िन्दगी की हो या मोहब्बत की मुझे हारना मंज़ूर है लेकिन हार मानना नही। क्यूँकि ये रेस मेरी थी है और रहेगी और मैं इस रेस का-
और और की रट लगाता
जब जीवन 'रेस' बनाता जीनेवाला।
खुशियाँ पीछे रह जाती
आगे ढूंढता रहता वो मतवाला।।
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सब अपनी अपनी रेस में दौड़ रहे हैं।
कोई किसी का इंतज़ार नहीं करता।-
कि जान से भी हाथ धोना पड़े
दूसरों की देखा देखी कुछ ऐसा न करो कि जी जिंदगी भर रोना पड़े
बाइक की रेस से अच्छा,जिंदगी की रेस में आगे बढ़ो
बुद्धि विवेक से जिओ एक मुकाम हासिल करो
दुनिया में नाम कमाओ
आवेश में मत बह जाओ...-
धीरे- धीरे रे मना,
तू चल कछुए सी चाल।
ख़रगोश की तरह फ़लांग लगाएगा,
तो तू थक कर हो जाएगा ,
ज़िंदगी की रेस से बाहर।-
आगे क्या होगा नहीं मालूम,
पर आगे तो जाना हे,
कोशिश में कोई कमी नहीं,
हार के रूक जाना नहीं-
लक्ष्य की ओर भागना अच्छी बात है
परंतु कहीं आप ट्रेडमिल पर तो नहीं दौड़ रहे?-