पुरुषोत्तम कोशलेय भी मैं
परम भक्त आंजनेय भी मैं..
विवश नार सीता भी मैं
पुत्र वियोगी पिता भी मैं ....
भ्राता निष्ठ लक्ष्मण भी मैं
घर भेदी विभीषण भी मैं ....
अवध के मन की शंका भी मैं
लपटों में जलती लंका भी मैं
अहल्या सी अटल शिला भी मैं
हर क्षण घटित रामलीला भी मैं ..-
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।
देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा।
बंदि चरन कह सहित सनेहा॥
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना।
जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥
[ तुलसीदास ]-
मैं राम का अभिमान हूं,
तो रावण का अहंकार भी मैं...
मैं बुद्ध की शांति हूं,
तो ख्वाहिशों का औरंगजेब भी मैं...-
हमारी भी तीन तीन शादियां हुई लेकिन
हमने कभी शादी के कार्ड में ये नहीं लिखवाया
"मेरे भैया की छादी में जुलूल जुलूल"
आना- विभू, कुम्भू, सूर्पनखा😂😂😂😀
-लंकापति रावण-
रावण :
कितनी बार बेरहमी से मरे हुए को जलाओंगे,
अपने भीतर झांकोगे तो एक नहीं अनेक पाओंगे।
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हजारों रावण मिलकर आज,
बेजान एक पुतला जलाएंगे।
और उस पुतले को आग के हवाले कर,
रावण की झूठी मौत का ढोंग रचाएंगे।-
उजागर कर दूँ सारे चेहरे , मैं कोई रावण तो नहीं ,
निकले ना मुझे कोई कमी, मैं पुरषोत्तम राम तो नहीं ।।
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स्त्री की परिकल्पना सीता है
समाज रूपी लक्ष्मण ने
खींची रेखा है
राम और रावण पर
पुरूषों का अधिकार है
स्त्री को चलना
उसके अनुसार है
मैंने हर पल खुद को
नियंत्रित देखा है
नहीं बन सकी राम और रावण
मेरी आत्मा में सिर्फ सीता है
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पुतले जलाने से क्या होगा,
बस राख होगी, धुआं होगा..
झांक कर देख अपने गिरेबां में,
रावण तुझसे तो अच्छा होगा..
©drVats
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