#प्रेमपत्र
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एक वक्त बाद
प्रेमी के आँखों से
ठुकराये जाते हैं सच्चे प्रेमपत्र
जैसे चातुर्मास में
ईश्वर के कांधे से झड़ जाती है
अनंत अडोल प्रार्थनाएं...
#मौसमी_चंद्रा
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जब जिंदगियों की चालाकियों से
कहीं भागने का मन करे,
कोई तो हो,कहीं तो हो...
जो बढ़कर संभाल ले
दो - चार - दस लोग हो न हो
जरूरत नहीं भीड़ की!
बस एक मजबूत कांधा ही काफी है
जहां खुलके अश्क बहा लें
जब भागने का मन करे
कोई तो हो...कहीं तो हो...
#मौसमी_चंद्रा
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#ख़र्च
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मेरे प्रिय!
किसी दिन आना तुम
अकेलेपन की मुफ़लिसी से तंग आकर!
मैं पूरी की पूरी
तुमपर ख़र्च होना चाहती हूं!
#मौसमी_चंद्रा
#Moshmi_chandra_lv_quotes 🍁-
प्रेम में हम अपने प्रियतम की उन सारी चीजों से भी प्रेम करने लगते हैं जो उन्हें पसंद होती है!
उनके शौक़ को हम भी बड़े शौक़ से अपनाते हैं...और जब ये छलावा टूटता है तब ये महसूस होता है कि दरअसल हम वो रहे ही नहीं जो हम थे!
इस बदले हुए 'मैं' के साथ रहना, प्रिय के बिछोह से भी अधिक कष्टप्रद होता है!
#मौसमी_चंद्रा-
#जाने_भी_दो
#मौसमी_चंद्रा
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छूटने दो हाथ से जो छूटता है
जबरन थामे रखने की जिद क्यों करना!
जो होगा तुम्हारे हक का, लौट के आयेगा
बातिल रिश्तों के लिए, क्या ही शोक मनाना!
(बातिल*झूठ असत्य)
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#तुम्हारे_आने_से
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तुम्हारे न रहने से
बदलता नहीं कुछ भी
सब वैसे का वैसा रह जाता है
जैसे बिना हिले डुले खड़े रह जाते हों
कोई खंडहर
सूखे पेड़ पर पतझड़!
तुम्हारे आने से लौट आता है सब
वहीं बसंत
वहीं पुराने मंजर!
#मौसमी_चंद्रा-
#बैठे_ठाले
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कभी - कभी खोना बहुत जरूरी होता है...चाहे सामान हो या इंसान!
अगर ढूंढा गया तो समझो उसकी कदर है और न ढूंढा जाए तो समझो...ऐं - वैं ही पड़ी थी फिजूल में!
#मौसमी_चंद्रा-
#बैठे_ठाले कोट्स
प्रेम हमें बदलता है। प्रेम में रहने पर एक भावुक इंसान और भी ज्यादा मुलायम हो जाता है और प्रेम छूटने के बाद हद से ज्यादा निर्मम! दोनों ही अवस्था घातक होती है! बेहतर होता है थोड़ा - बहुत असंवेदनशील होना!
कायदे से, भावुक इंसानों को प्रेम में पड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए! ये उन जैसों के लिए सीमित कर देना चाहिए जो प्रेम को एक स्टेशन समझते हैं...एक गुजरा..दूसरा आयेगा!
#मौसमी_चंद्रा-
क़रीब कहने वाला हर शख़्स बैठा था पास
एक गैरहाज़िर होकर भी हाज़िर रहा
कमरे में जल रही थी नई अंगीठी
याद मखमूश की ठंडी गलियों में भटकता रहा
#मौसमी_चंद्रा
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Notes 📖
सब ख़्वाब ही रह गया ...तुम साठ की उम्र में भी बांधते मेरे जूतों के फीते और मैं कहती उठ जाओ...अब बुड्ढे हो गए हो गए हो! कमर दर्द होगी तो मुझे ही मालिश करनी होगी और तुम कहते...कि कर देना मालिश पर ये सुख लेने दो!
वो भी ख़्वाब रह गया...जब पढ़ते - पढ़ते मेरी आंख लग जाती और तुम धीरे से किताब हटाकर मेरा चश्मा निकालते और मुझे ओढ़ा देते गर्म शॉल!
एक ख़्वाब ये भी कि हम पहाड़ों पर घूमने की बात करते लेकिन सांझ ढले छत पर कुछ कदम हाथों में हाथ डाले कुछ कदम चलते और ऐं - वें गप्पे मारते! फिर सुकून से चाय के दो घूंट भरते!
और सबसे खूबसूरत ख़्वाब... मैं दरवाज़ा खोलती और तुम सामने होते!
जाने कितने ख़्वाब थे...जो ख़्वाब ही रह गए!
एकाध को सच हो जाना चाहिए था...!
#मौसमी_चंद्रा
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