बोल मेरी ए तन्हाई,
जो है नहीं, वो फिऱ क्यों है,
उसको तो मैंने मांगा था,
यह अपना ही पराया, आख़िर क्यों है,
मंज़िल तो कब की छूट गयी,
फिऱ ज़ुस्तज़ु-ऐ मुसाफ़िर क्यों है,
दिल के खेल में दिल पूछे,
दिल तू इतना काफ़िर क्यों है..!-
मेरे बारे में क्या जानना है,
और तुम्हें क्या बताऊँ,
कह तो दिया कि,आम सा लड़का हूं,
अब क्या कोई झूठी कहानी बनाऊं,
ये जो हो जाते हो हर बात पे नाराज़ तुम,
ये तो बताओं कि और कितनी बार मनाऊ,
कुछ राज मेरे अपने है,
अब हर राज की वज़ह बताऊं,
पसंद हो तुम किस कारण से,
ये भी अब तम्हें लिख के बताऊं,
हर चीज़ में मेरी बुराई ढूंढते हो,
अब तुम ही बताओं क्या इतना बुरा हूं,
प्यार है तुमसे इसलिये चुप हूं,
कहो तो अपनी बुराई दिखाऊं ।-
बस खुदका खयाल रखा करो
अपना मन बहलाने के लिए
ना कोई झूठी तसल्लीया दिया करो-
देखो ना मैं कितनी झूठी......!
देखो...... ना मैं कितनी झूठी!!!
अधरों पर ही,
चतुराई से....
मुस्काई मैं जब भी टूटी.......!
देखो ना मैं कितनी झूठी.......!!!
प्रेम भरे,
चन्दन की डिबिया में रहती हूं...
उतरा हुआ इत्र...
मैं नारायण की जूठी.......!
देखो ना मैं कितनी झूठी.....!!-
मसाइब बहुत है
ज़िन्दगी में ,
मगर मैं फिर भी
मुस्कुरा लेती हूँ,
रखकर लबों पर
हँसी झूठी ,
मैं अपना हर
गम छुपा लेती हूँ..!!
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मसाइब -- कठिनाइयाँ-
अब मोहब्बत की झूठी कसमो से मुक्त हूं ,
तभी तो खुद की सोच में लुप्त हूं ,-
ऐ ख़ुदा ऐसा कर अब इस जिस्म से जान निकाल ही ले
क्या पता इसी बहाने उनके मुँह से झूठी आह तो निकले
- साकेत गर्ग 'सागा'-
सबसे "खतरनाक" होता है,
"आदमियों" को "आंकड़ों" में बदलते देखना
और सबसे "पीड़ादायक" उन "आंकड़ों" का
"तमाशा" बनते देखना..!!!!
(:--स्तुति)-
ले जाओ समेट कर अपनी झूठी मोहब्ब्त
अगले किरदार में तुम्हें काम आएगी....
पर वफा ना मिलेगी
क्योंकि वो हमारे बाद आएगी....-