QUOTES ON #जिम्मेदारी

#जिम्मेदारी quotes

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9 MAY 2018 AT 15:22


बाबा के चले जाने के बाद पूरे घर की ज़िम्मेदारी उठाते देखा है,
कुछ इस तरहा मैंने माँ को भी बाप बनते देखा है।।

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7 FEB 2019 AT 6:30

दिल के दरिया का हाल हुबहू जंगल की तरह,
एक ही घाट पीते है पानी,ज़रूरते और ख़्वाब!

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24 JUL 2018 AT 17:51

सर पे जब थोड़ी ज़िम्मेदारियाँ पड़ती है,
ख्वाईशें फिर कुछ,दिल में खुदखुशी कर लेती हैं।।

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28 SEP 2018 AT 8:46

जागते रहना है, पढ़ते रहना है,
पिताजी की फ़िक्र को फक्र में जो बदलना है।

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11 JUL 2020 AT 22:55

अपने आप को खुश रखना किसी और की नहीं , केवल हमारी जिम्मेदारी है !

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11 SEP 2018 AT 19:34

ज़िम्मेदारियों को सर पे कुछ यूँ पड़ते देखा है,
अपने अंदर के बच्चें को मैंने बचपन मे ही मरते देखा है।।

ज़िन्दगी भी अब कुछ इस तरह से खेल खिला रही है,
बचपन मेरा छीन कर मुझें बचपने से रिझवा रही है।।

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7 MAY 2021 AT 16:28

आसमाँ पे हाथ उठाने से क्या होगा
सूखे पत्तों में पानी देने से क्या होगा

जिनसे साँसे थी, वो अब नम्बरों में दर्ज हैं
इस सरकारी निंदा - सहानुभूति - मुआवजों से क्या होगा

धूं - धूं जल रहे हैं अपने श्मशानों में
उसकी चौखट पे मत्था टिकाने से भी क्या होगा

सुना है एक और लहर की चेतावनी है
यार समझो, भैंस के आगे बीन बजाने से क्या होगा।

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चंद पैसे कमाने को मजबूर लड़का !!
है घर चलाने को घर से दूर लड़का !!

अपनों से दूरी का ग़म, सच मायने में
जानता है शहर गया मज़दूर लड़का !!

आंसूओं पर बंदिश है, कोई देख ना ले
रो भी नहीं पाता कभी भरपूर लड़का !!

इश्क़ की बस्ती में पाँव गर रखे भी तो
ज़माने में बेवफाई से मशहूर लड़का !!

चाँद है लड़की, सभी यहां बतलाते हैं
कोई नहीं कहता, है कोहनूर लड़का !!

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8 JUL 2019 AT 13:00

ज़रा वतन की मिट्टी से भी यारी रख
दिल में बस इतनी सी बात हमारी रख

नेकी करके भले ही दरिया में डाल
दिल में अपने ज़िन्दा तू खुद्दारी रख

हर लड़की की एक ही जैसी इज्ज़त है
ज़रा कुछ तो अपनी तू ज़िम्मेदारी रख

जो भी आता है उसके साथ मिल जाता है
अच्छे-बुरे की अपने अन्दर होश़ियारी रख

रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं इकट्ठे कर ले
भले ही उसके लिए दिल में अलमारी रख

जो भी हो रहा है हमारा किया कराया है
सब ठीक करने की अब ख़ुद तैयारी रख

मौत आयेगी तो बच नहीं पायेगा "आरिफ़"
चाहे बचने के लिए बन्दूक तू सरकारी रख

लिख ले "कोरे काग़ज़" सबके मान के लिए
अल्फाज़ पूरे और कलम को अहंकारी रख

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9 JUN 2021 AT 8:02

बचपन से ही परिवार का बोझ
अपने नाज़ुक कंधों पर उठाते हैं,
हाॅं, ये मासूम कच्ची उम्र में पिता बन
अपना घर-बार चलाते हैं ।।
ख्बावों को जिम्मेदारी के बक्से में बंदकर
बेबसी का ताला लगाते हैं ,
और मासूम हसरतों का गला घोंट
दो जून की रोटी जुटाते हैं।।
फटे कपड़ों में बाप की शराब की गंध लिए
भूखे पेट ही काम पर आ जाते हैं,
पर चीथड़ों से झांकते ज़ख्म के निशान
अधूरे ख्बावों की दास्तान कह जाते हैं।।
शेष कैप्शन में पढ़ें 🙏🙏
.......... निशि..🍁🍁

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