एक हिस्सा
जो खुद की कमाई का हो
उसे भी वार देता है वो
एक निवाला जिसपर
अधिकार सिर्फ उसका है
उसे भी छोड़ देता है वो
एक बिस्तर जहाँ
नींद के गुनगुने खावों में
अपनी आँखें मूंद देख सके
उसे भी छोड़ देता है वो
हँसी अपनी हाल पर
तरस खाती हो जिनके होंठ
के खातिर ताउम्र
सौतन बनाकर छोड़ देता है वो
वो सिर्फ घर के होते हैं
और घर के ही रह जाते हैं
इतना आसान नहीं है
घर का मुख्य ब्यक्ति होना।
जिंदगी हार जाती है
जिंदगी होने से
पर नहीं हारता वो-
जहां मेरा अल्हड़ बचपन बीता, दादा-दादी की छत्रछाया थी,
घर के इस कोने कोने में, जंहा मासूम जिंदगानी बसती थी!
घर के ऊपर लहराते वो दो पेड़ पीपल के जैसे रखवाले हो,
चिड़िया, तोता, काग, मोर, गिलहरी से ढेरो हम बतियाते थे!
घर की सबसे ऊंची छत पे गर्मियों की रात सो जाते जब,
चाँद सितारों से रोज मुलाकातें, वो अम्बर आँगन जैसा था!
बाजू घर की वो पड़ोसन, आंखों आंखों में बातें होती थी,
कुछ निशानियां अब रह गई उधारी, जो सहेज के रखती थी!
कंचो का डिब्बा था कुबेर खजाना बड़े जतन से छिपाते थे,
रोज सुबह शाम गिनते कंचे, हार-जीत का हिसाब रखते थे!
मोहल्ले के वो पेड़ नीम का अब ठूंठ बन कर रह गया है,
घर अब हो जाएगा सुन्न सन्नाटा, जो अब तक गुलज़ार था!
बस, कुछ यादें, कुछ अफसोस, कुछ अधूरी ख़्वाहिश होगी,
लेकिन यह जीवन चक्र है, जिसको कुबूल तो करना ही था!
_Mr Kashish-
मौरंग, सीमेंट, रेत में फंसे सरियों के फंदे हैं
मेरा घर कोई इमारत नही पिताजी जी के कंधे हैं।-
बची हुई ईंटों से चलो एक घर बना लें
जिसमें तुम्हारा आगाज़ हो
सुबह-शाम रियाज़ करती
तुम्हारी आवाज़ हो
पर नज़र लग जाती है मेरे सुकून को
देखो,
हमारे घर का एक बीमा
करा दो।-
दफ़्न होकर घर के बूढ़ों ने मकां की नींव में
शहर भर की बिल्डिंगों को और पुख़्ता कर दिया।।-
गर काट सकता ज़िन्दगी, तो काट मैं लेता
चीज़ें कई मेरे भी घर में.............. धार वाली हैं
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