24 MAR 2018 AT 3:50

ये जो सोने नहीं देता
तेरा खालीपन तो नहीं है कहीं
बरसों रहे हो तुम घर में दिल के
अब नहीं हो तो चीखता है सन्नाटा
इसकी दीवारों पर लगी तुम्हारी तस्वीरे
अब भी उतनी ही जीवंत हैं
कैसे भूल सकता है कोई अपने जीवन का अनोखा प्रेम
जिसमें होकर कुछ पाने खोने की लालसा नहीं रहती
वो अमृत जिसकी एक बूंद भी बरसो तक जीवित रख सकती है
वो शाप जो मुझे किसी और का होने नहीं देता
तुम्हें देखना भी चाहती हैं आंखें और डरती हैं कि
कहीं फिर हार ना बैठे दिल
ये जो डर है वो कुरेदता है मन के विचारों को
विवश कर देता है दूरियों को गले लगाने को
अब ये दूरियां ही मुक़द्दर है ज़ोया की मोहब्बत का
क्या पता किसी जनम मुक़द्दर बदल जाये...

- Swati_Gupta