ज़्यादा का कोई शौक़ नहीं, के कम हम ख़ुद रखते है। हर किसी को नहीं देते जगह ख़ास, शक्स वह ख़ास हम ख़ुद चुनते हैं। दुनिया हमारी सिमटी भले कुछ लोगों में है, पर इन्ही लोगों में हम अपना आशियाना सझाये रखते है।
बुलावा जब महाकाल का आता है, सारे बिगड़े काम भी बन जाते है। महीनों तक ना मिलने वाली रेल की टिकटें, झट से मिल जाती है, कितनी ही दूरी हो, एक पल में महाकाल और उनके भक्तों की बीच की, क्षण भर में नष्ट हो जाती है।
कभी माँ तो कभी बेटी, कभी बहन तो कभी बीवी, कभी इन सब से बढ़कर बनी दोस्त वह। हर रिश्तों में थी निपुण, हर किरदार में ममता और प्यार बरसाया। कहीं ढाल बनी, तो कहीं बनी सहारा, इस तरह नारी ने हर वक़्त संसार का भार, पुरुष के साथ मिलकर उठाया। इस विश्वस्तरीय नारी दिवस पर शत शत नमन, करता हूँ मैं स्वप्निल हर नारी को, जिनके बिना अधूरा है जीवन हमारा।