कभी गालों पर तो कभी आंखों पर
अब मैं होश सम्हालूं या
उसकी जुल्फ़ें-
मेरे सीने की हिचकी भी मुझे खुल कर बताती है.
तेरे मां पापा को गांवों में तेरी अक्सर याद आती है.!-
जिस अखबार में आज तेरा नाम है ..
कल उसमें ब्रेड समोसा परोसा जाएगा..
एक बार फिर वक्त की बदलती आदत को..
भरपूर कोसा जाएगा .!!-
ये:-एक साल पहले की बात कुछ और थी मुझे अब इससे शादी नहीं करनी ये बर्तन फेंक कर मारती है
वो:-अब से मारती है या पहले से
ये:-पहले से
वो:-तो अब शादी से मना क्यों
ये:-क्योंकि अब इसका निशाना सही हो गया है
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"मेरी पीड़ा मुझसे न पूछो,मैं खुद के घर में दंडित हूँ।
मुझे बचाने कोई ना आया, मैं 'कश्मीरी पण्डित' हूँ॥-
आज फिक्र जिक्र से आजाद कर दिया उसे
और वो नासमझ खुद को परिंदा समझ रहा है
जिसकी रूह ने तासीर न पढ़ी जिंदगी की कभी
वो खुद को जिंदा समझ रहा है,परिंदा समझ रहा है-
पहले खत पकड़े जाते थे..
फिर मोबाइल और अब स्क्रीन शॉट...🙄
ऐ मोहब्बत तेरा तो बेड़ा गर्क हो गया.... 😂— % &-
वो कमरे में बैठा आग सुलगाता था लफ़्ज़ों से
बाहर किसी का दम घुट गया,किसी का जिस्म जल गया
इसलिए कलम हर लम्हा गवाही देगी स्वतन्त्र
जो भी लिख ईमान से लिख इत्मीनान से लिख-
कलम ने बगावत कर दी है
उंगुलियों में कैद नहीं रहेगी,
स्याही का भी इश्क टूट चुका है
बन्द बोतलों में नहीं रहेगी,
लिख कैसे दूँ इंकलाब कागज़ पर ...!!!
स्याही की जिद है ,वो अब कलम की रगों में नहीं बहेगी,-
चिंता इतनी कीजिए की काम हो जाए,
पर इतनी नही की जिंदगी तमाम हो जाए,
मालूम सबको है कि जिंदगी बेहाल है,
लोग फिर भी पूछते हैं और सुनाओ क्या हाल है!-