कोमल पुष्पों की शय्या पर विघटित
मानस का एक स्वरूप,
खंडित मानस, हृदय पुलकित,
दिवास्वप्न ये प्रेम।
योद्धा जीवन, प्रेम से सिंचित,
जीवन को मिलता एक अर्थ।
समय बींधता कोमल यौवन,
प्रेम नहीं यौवन का दास।
अर्थहीन शब्दों से लगे कैसे इस हृदय का मोल,
होता संसार न एक कारगार, तो देता तुमको मैं बोल,
तुम्ही हो वो लक्ष्य, जिसको पाने मैं चलता था,
चरम से करता संघर्ष, तुमको ही मैं हृदय में रखता था।
विकट से लड़ा, अभी भी मैं खड़ा,
जानता हूं, अब योद्धा नहीं जी पाते,
विकृत संसार में, विकृतियों के मध्य,
प्रेम पुष्प अब नही खिल पाते।
आत्मा थकी, हृदय में है आशा,
कोई संसार ऐसा होगा,
जहां मैं तुम्हे वह सब बताता,
जो खंडित होने से पहले मैंने था सोचा।
एक, एकमात्र, एवं सदैव,
अगर होता तो ये ही होता,
पुष्प का भ्रमर, सूर्य का सूरजमुखी,
एक थका योद्धा तुम्हारी छांव में सोता।
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