2 JAN 2019 AT 22:25

सोच ( एक लघुकथा )
यूँ तो सुलभा बचपन से ही तेज थी।लेकिन जब ससुराल गई तो ससुरालवालों व पति का स्वभाव तो
उससे भी तेज निकला।उसमें और उसके पति में बहुत
मतभेद होते लेकिन वह औरत थी उसे ही झुकना पड़ता ।कई बर्ष बाद उसके एक मात्र भाई की शादी
हुई।अपनी नई भाभी को देखकर उसे अपना समय
याद आ गया।फिर क्या था वह जब भी मायके आती
अपनी भाभी को ताने आदि देकर नीचा दिखाने की
कोशिश करती और अपनी माँ को भी ऐसा करने के लिए उकसाती।इसी तरह कई बर्ष बीत गए।अब उसके
बेटे की शादी हुई बहु अमीर घर से थी लेकिन अब उसने अपनी सोच को बदलना चाहा।बहु को खूब लाड़
दुलार करती उसके साथ बात करना चाहती।उसका हाथ बंटाना चाहती।
लेकिन एक दिन बहु ने टोक ही दिया मम्मी
जी आप अपने काम से काम रखें मुझे मेरी तरह ही
जीने दें।सुनकर सास का मुँह उतर गया।उसे अपनी
वह भाभी याद आई जिसने उसकी हजार बातें सुनने
के बाद भी कभी पलट कर जबाब नहीं दिया था।

- Sunita Agarwal (अंतर्मन)