जिसने दुनिया को समझा है,
उसको सब कहते पगला है।
उसने दुनिया को समझा है,
जो ख़ुद,ख़ुद से खूब लड़ा है।
वैसे तो वो अच्छा लगता है,
पर चेहरे पर चार बजा है।
मेरे मात पिता लड़ते हैं,
वैसे उनमें प्यार बड़ा है।
सच में दुनिया यूँ लगती है,
जैसे शंकर नाच रहा है।
चिल्लाने से क्रोध बढ़ेगा,
"चुप रहने में और मज़ा है।"
सूबे सिंह "सुजान"
कुरूक्षेत्र हरियाणा
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