So I keep walking,
On my own path,
My feet, steady and sure,
Without a single regret or wrath.-
कुछ कहना सबको है
बस शर्त इतनी है की कोई सुन ले
सुने बिना तर्क किये
समझे कि जरूरत न सलाह न सहानुभूति की है
चाहत है तो सिर्फ अपनेपन की-
वक़्त जो मिली है
खुद से रूबरू होने का
तो सिख रहे है
वक़्त की खामोशी को पढ़ने का
कभी खाली दीवारों पर यादें ढूंढते है
तो कभी पुराने खातों पर अपनी हंसी
ये वक़्त जो ठहराव लाया है
उम्र भर की थकान साथ ले जाएगी-
आज फिर से तारीफ मेरे काम से ज्यादा चेहरे की हुई
आज फिर से मेहनत से ज्यादा मेरे किसमत की बात हुई
ज़िन्दगी के हसीन लम्हो को छोर
वक़्त को दफ्तर के नाम करदी है
उम्र के सभी दायरों को पार
अपनी एक पहचान बनाई है
आंखें थक जाती
तो पीछे रह जाने के खयालात सोने नही देती
आज वो तमाम कुर्बानिया
महज एक लिंग के नाम से प्रकाशमान हुआ
लिंग वो जो जाना जाता है
रिझाने के लिए
लिंग वो जो जाना जाता है
कमज़ोरी के नाम से
लिंग वो जो जाना जाता है
एक स्त्री के नाम से-
कहते है
समाज लोगो ने बनाया है
फिर भी अपनी अपनी अपेक्षाओ को नियम क्यों बताया जाता है
कहते है
इंसान हर प्रश्न का उत्तर ढूंढ ही लेता है
फिर भी ऐसे सवाल करने से क्लेश क्यों पैदा होता है-
रिश्तों को समेटने की कोशिश नही करते
क्योंकि जिद्द अपना मेहमान है
फिर भी बदनाम तो वक़्त ही होता है-
सहम सी गयी देख बिना दाग के ओढ़नी को
क्योंकि आदत सी बन गयी इस फ़टी चादर की।
इसे सहज कर पिरोया है दर्द की परछाईयों से
मोतिया जो है सजी बिखरे ख्वाबों की।
समेट लू जो तुम्हे इस चादर में
बन कर रहे जाओगे सदा इस अंधेरे की।-
दिल के रंगमंच में
बोहत से किरदारों ने छाप छोरें है
पर उस लम्हे की तारीफ
करती मेरी मुस्कान है
जब मुखातिब हुए हमारे दो जहां थे
अर्ज़ियाँ करती आंखें मेरी
निहारु खूबसूरती तेरे मन की
वो आंखें जो दर्पण सा है
देख जो लू खुद को उनमें
सिमट जाऊ तेरी साँसों में-
बोहत सी बातें है तुमसे कहने को
न जाने शुरुवात कहाँ से करू
बोहत सी बातें है तुमसे कहने को
पर न जाने शुरुवात कहाँ से करू
जो बातें खुद ही ने लिखवाई है तुम्हारे मन में
उसे मिटाकर कुछ और कैसे लिखु
उसी कहानी को दोबारा कैसे सुनाउ
जिसका मुकाम ही मुकम्मल न कर सके
अधूरे लफ़्ज़ों को जोड़ना चाहू भी तो
रूठे खयालात हंस देती है
उन हज़ार नाकामियाब बहनो पर
बड़ी मशक्कत से तुम्हे आंगन तक तो ले आये
पर घर का दरवाजा न खोल पाए
आज दर्पण में खुद को ढूंढते ढूंढते
तुम तक जा पोहोची
देख कर अपनी वह मुस्कान
उस बीतें काल पर ईर्ष्या सी हुई
ऐसी बोहत सी बातें है बाकी
बस न जाने शुरुवात कहाँ से करु-
What I was looking for
was your presence in-between
the blank spaces of my words
rather be the meaning.-