So I keep walking,
On my own path,
My feet, steady and sure,
Without a single regret or wrath.-
कुछ कहना सबको है
बस शर्त इतनी है की कोई सुन ले
सुने बिना तर्क किये
समझे कि जरूरत न सलाह न सहानुभूति की है
चाहत है तो सिर्फ अपनेपन की-
वक़्त जो मिली है
खुद से रूबरू होने का
तो सिख रहे है
वक़्त की खामोशी को पढ़ने का
कभी खाली दीवारों पर यादें ढूंढते है
तो कभी पुराने खातों पर अपनी हंसी
ये वक़्त जो ठहराव लाया है
उम्र भर की थकान साथ ले जाएगी-
आज फिर से तारीफ मेरे काम से ज्यादा चेहरे की हुई
आज फिर से मेहनत से ज्यादा मेरे किसमत की बात हुई
ज़िन्दगी के हसीन लम्हो को छोर
वक़्त को दफ्तर के नाम करदी है
उम्र के सभी दायरों को पार
अपनी एक पहचान बनाई है
आंखें थक जाती
तो पीछे रह जाने के खयालात सोने नही देती
आज वो तमाम कुर्बानिया
महज एक लिंग के नाम से प्रकाशमान हुआ
लिंग वो जो जाना जाता है
रिझाने के लिए
लिंग वो जो जाना जाता है
कमज़ोरी के नाम से
लिंग वो जो जाना जाता है
एक स्त्री के नाम से-
Looking at the beautiful moon
Hoping you're too, at the terrace of your room
Listening all my favourite music tracks
Every song has imaginary story breaks
"Moon" most beautiful thing sky have in his arms..
As you were for me, though lots of beautiful stars around
Without the moon the sky is incomplete
You're not all alone to feel the emptiness..
I wish I could have said you "yes, I do "
A fool to thought you'd read my silence..
Every night with moonlight, I sing for you...
Though it never reach your ears, still I will sing for you...
Childhood crush never became love, I never stepped forward
And writing poems reliving the few memories going backwards..!-
कहते है
समाज लोगो ने बनाया है
फिर भी अपनी अपनी अपेक्षाओ को नियम क्यों बताया जाता है
कहते है
इंसान हर प्रश्न का उत्तर ढूंढ ही लेता है
फिर भी ऐसे सवाल करने से क्लेश क्यों पैदा होता है-
रिश्तों को समेटने की कोशिश नही करते
क्योंकि जिद्द अपना मेहमान है
फिर भी बदनाम तो वक़्त ही होता है-
सहम सी गयी देख बिना दाग के ओढ़नी को
क्योंकि आदत सी बन गयी इस फ़टी चादर की।
इसे सहज कर पिरोया है दर्द की परछाईयों से
मोतिया जो है सजी बिखरे ख्वाबों की।
समेट लू जो तुम्हे इस चादर में
बन कर रहे जाओगे सदा इस अंधेरे की।-
दिल के रंगमंच में
बोहत से किरदारों ने छाप छोरें है
पर उस लम्हे की तारीफ
करती मेरी मुस्कान है
जब मुखातिब हुए हमारे दो जहां थे
अर्ज़ियाँ करती आंखें मेरी
निहारु खूबसूरती तेरे मन की
वो आंखें जो दर्पण सा है
देख जो लू खुद को उनमें
सिमट जाऊ तेरी साँसों में-
बोहत सी बातें है तुमसे कहने को
न जाने शुरुवात कहाँ से करू
बोहत सी बातें है तुमसे कहने को
पर न जाने शुरुवात कहाँ से करू
जो बातें खुद ही ने लिखवाई है तुम्हारे मन में
उसे मिटाकर कुछ और कैसे लिखु
उसी कहानी को दोबारा कैसे सुनाउ
जिसका मुकाम ही मुकम्मल न कर सके
अधूरे लफ़्ज़ों को जोड़ना चाहू भी तो
रूठे खयालात हंस देती है
उन हज़ार नाकामियाब बहनो पर
बड़ी मशक्कत से तुम्हे आंगन तक तो ले आये
पर घर का दरवाजा न खोल पाए
आज दर्पण में खुद को ढूंढते ढूंढते
तुम तक जा पोहोची
देख कर अपनी वह मुस्कान
उस बीतें काल पर ईर्ष्या सी हुई
ऐसी बोहत सी बातें है बाकी
बस न जाने शुरुवात कहाँ से करु-