Sonu Kumar Saxena   (Sonu Sarthak)
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Simple living High thinking
Joined 25 July 2019


Simple living High thinking
Joined 25 July 2019
2 FEB AT 21:22

छोटी सी पंक्ति
जो सोचने को मजबूर करे


पाप तुम करो और धोये गंगा... ?



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1 FEB AT 18:53

वक़्त का है...

कुछ भी तेरा नहीं है
कुछ भी मेरा नहीं है
ये कुछ जो भी है वो सिर्फ़
...और सिर्फ़ वक़्त का है
जो पलक के झपकने से लेकर
इस शरीर की हर एक साँस तक
जो बचपन सफ़र से युवान तक
बस ललचाता रहता है,
इसलिए...
ख्वाहिशों को खूबसूरत बनाता रहता है

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20 JAN AT 19:17

हर आवाज़ पर उस शख्स को ढूढ़ ते रहे... इंतज़ार में...

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19 JAN AT 19:17

अकेलापन

दर्द आता चला गया
जखम सताता चला गया
फिर जो भी शख्स मिला
कोई जलाता चला गया
कोई बुझाता चला गया

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19 DEC 2024 AT 18:55

उम्र...


कभी बचपन को हँसा रही है
कभी जवानी को दौड़ा रही है
उम्र की धोंस तो देखो
हर पल पर इतरा रही है

कभी ज़िन्दगी पर जरूरतों
को बरसा रही है
कभी ख्वाहिशों के घमंड में
सता रही है जला रही है
उम्र की धोंस तो देखो
हर पल पर इतरा रही है

शरीर के हर भूख में शामिल होकर
नये नये खेल बना रही है
रोज़ की उम्मीदों पर
आशाओं को जगा रही है
उम्र की धोंस तो देखो
हर पल पर इतरा रही है

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16 DEC 2024 AT 19:23

वक़्त
- shamishuil haq✍️

आगे सफर था और
पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और
चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और
उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,
उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और
चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले,
जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!

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15 DEC 2024 AT 16:47

मेहनत


जिसने मेहनत की है

उसे भूलती जाती है

और खड़ी दीवार सोचती है

ईट इसकी वजह है

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15 DEC 2024 AT 16:37

रुपया

जब तक हाथों में हूँ
ख्वाहिशों को लुभाता हूँ
हाथों से निकलते ही
अपनो को सताता हूँ

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25 NOV 2024 AT 6:55

वक़्त

मैं वक़्त अपने नहीं बना पाया
मैं वक़्त सपने नहीं जुटा पाया
मैं उम्मीद लिए निकलता रहा
मैं आशाओं को जोड़ने के लिए
उम्र के साथ धुआँ धुआँ सा हुआ
और खत्म हुआ ओझल हुआ

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13 NOV 2024 AT 21:26

ख्याब वक़्त झांकते रहे
दिन जरूरतैं ताकते रहे
रात ख्वाहिशें नापते रहे


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