छोटी सी पंक्ति
जो सोचने को मजबूर करे
पाप तुम करो और धोये गंगा... ?
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वक़्त का है...
कुछ भी तेरा नहीं है
कुछ भी मेरा नहीं है
ये कुछ जो भी है वो सिर्फ़
...और सिर्फ़ वक़्त का है
जो पलक के झपकने से लेकर
इस शरीर की हर एक साँस तक
जो बचपन सफ़र से युवान तक
बस ललचाता रहता है,
इसलिए...
ख्वाहिशों को खूबसूरत बनाता रहता है
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अकेलापन
दर्द आता चला गया
जखम सताता चला गया
फिर जो भी शख्स मिला
कोई जलाता चला गया
कोई बुझाता चला गया-
उम्र...
कभी बचपन को हँसा रही है
कभी जवानी को दौड़ा रही है
उम्र की धोंस तो देखो
हर पल पर इतरा रही है
कभी ज़िन्दगी पर जरूरतों
को बरसा रही है
कभी ख्वाहिशों के घमंड में
सता रही है जला रही है
उम्र की धोंस तो देखो
हर पल पर इतरा रही है
शरीर के हर भूख में शामिल होकर
नये नये खेल बना रही है
रोज़ की उम्मीदों पर
आशाओं को जगा रही है
उम्र की धोंस तो देखो
हर पल पर इतरा रही है
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वक़्त
- shamishuil haq✍️
आगे सफर था और
पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और
चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और
उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,
उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो
का हमसफर भी था
रूकते तो बिछड जाते और
चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
बस यही दो मसले,
जिंदगीभर ना हल हुए!!!
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!!
वक़्त ने कहा.....काश थोड़ा और सब्र होता!!!
सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता!!!-
मेहनत
जिसने मेहनत की है
उसे भूलती जाती है
और खड़ी दीवार सोचती है
ईट इसकी वजह है-
रुपया
जब तक हाथों में हूँ
ख्वाहिशों को लुभाता हूँ
हाथों से निकलते ही
अपनो को सताता हूँ
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वक़्त
मैं वक़्त अपने नहीं बना पाया
मैं वक़्त सपने नहीं जुटा पाया
मैं उम्मीद लिए निकलता रहा
मैं आशाओं को जोड़ने के लिए
उम्र के साथ धुआँ धुआँ सा हुआ
और खत्म हुआ ओझल हुआ-
ख्याब वक़्त झांकते रहे
दिन जरूरतैं ताकते रहे
रात ख्वाहिशें नापते रहे
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