Shiv Safar   (शिव सफ़र)
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Joined 23 February 2019


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13 APR 2022 AT 8:52

उसने इतनी आसानी से मेरा पत्ता काटा है
कि दुनिया के धोके-बाज़ों को मैं अब चारा लगता हूॅं

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10 APR 2022 AT 20:18

मच्छरदानी ऑलआउट पे पैसे क्यों बरबाद करूॅं
ख़ून तो उसने चूस लिया है मच्छर से अब डरना क्यूॅं

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8 APR 2022 AT 9:19

जब तक मैं ज़िंदा हूॅं बस तब तक ही बुराई सह लो मेरी
मरने के बाद तो वैसे भी अच्छा कहलाने वाला हूॅं

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2 APR 2022 AT 15:37

इस दौर में हम इन्सानों की कुछ बातें बहुत ही न्यारी हैं
अब हमसे भी ज़्यादा तो हमारे बर्तन शाकाहारी हैं

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1 APR 2022 AT 23:21

अपने हाथों अपनी ही दुनिया उजाड़ के मैं रोऊॅं
तेरी याद में जी करता है गला फाड़ के मैं रोऊॅं

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20 DEC 2021 AT 12:00

उड़ानें ऊंची भरते हैं वो जिनके पर नहीं होते
जो अक्सर घर बनाते हैं उन्हीं के घर नहीं होते

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20 DEC 2021 AT 11:48

तेरी खातिर कई अपनों से रिश्तें तोड़ आया हूं
तेरे पीछे कहीं पीछे मैं ख़ुद को छोड़ आया हूं

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1 SEP 2021 AT 17:50

बिखरना ही तब मुझको अच्छा लगा था
कि जब उसके सीने से मैं जा लगा था

मेरे पास आया था जब हिज़्र करने
वो पहली दफ़ा मुझको अपना लगा था

मैं जब टूटने की था जद्दो-जहद में
संभालेगा वो मुझको ऐसा लगा था

तुम्हारी तरह ही था जब मैं भी बदला
तो सच सच बताओ कि कैसा लगा था

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31 AUG 2021 AT 10:31

उसे बदनाम करने का तरीका ले के आया हूं
मैं उसकी बेवफ़ाई का मसौदा ले के आया हूं

मेरी ग़ज़लों को पढ़के फ़ैसला होगा मेरे हक़ में
इसी उम्मीद में सारा पुलिंदा ले के आया हूं

तेरे कसमों तेरे वादों का चाहत की अदालत में
सजा तुझको दिलाने को मैं ज़रिया ले के आया हूं

*मसौदा:– draft ; *पुलिंदा:– काग़ज़, कपड़ों की गठरी

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30 AUG 2021 AT 10:35

फिकर मुझको जमाने की न तब भी थी न अब भी है
वो क्या बोलेंगे ये पर्वा न तब भी थी न अब भी है

मुझे बस प्यार करने की थी चाहत सो किया मैंने
तुम्हारे जिस्म की ख्वाहिश न तब भी थी न अब भी है

मैं बिखरूंगा तो वो मुझको संभालेगा, अरे छोड़ो
कोई उम्मीद बर उससे न तब भी थी न अब भी है

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