प्रेम ही जीवन है । जीवन का आधार है । सुंदरता है । सार्थकता है । पर यह जब किसी व्यक्ति अथवा परिधि से संक्रमित हो जाता है, तो दुख और विनाश का कारण भी बन जाता है ।

प्रेम खुद से और फिर सबसे । यही प्रेम की स्वाभाविक स्थिति है । यदि ऐसा नहीं है, तो अपने प्रेम को समृद्ध और पूर्ण करने की जरूरत सबसे पहले है ।

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सीता राम शर्मा " चेतन "

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