पिछली यादों को मुड़के, जितनी भी दफा देखा,
न कोई प्यार,न कोई दोस्त, हमेशा साथ खड़ा पिता देखा।
चोट लगने पे, किसी ने खून तो किसी ने जख्म देखा,
एक वो है, जिसने भरी आंखों से मेरा दर्द और उसका
मरहम देखा।
टुटे जो सपने तो मैंने खुद को ही खुद से खफा देखा,
पर ये वो है, जिनको हर पल, मैंने मुझसे जुड़ा देखा।
और वो कितनी आसानी से कह देती है, कि छौड़ आओ
इन्हें वृद्धाश्रम
अरे नासमझ तुने तस्वीरें और मंदिरों में,पर मैंने तो बस इनमें ही
ख़ुदा देखा।
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