तुम्हारी तमाम स्मृतियाँ है
मेरे पास जो बिखरी है
इधर उधर मेरे कमरे में
नहीं, मैंने उन्हें सहेजा नहीं
स्मृतियों को मनुष्य नहीं
"स्मृतियाँ मनुष्य को सहेजती है"
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तुम्हारे हाथों में प्रेम उगेगा
जब जब डाले जायेंगे स्मृतियों के बीज
प्रेम पनपे इसके लिए आवश्यक है
"सीचा जाए प्रेम को स्मृतियों से"
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प्रेम और स्मृतियाँ पूरक है
एक दूसरे के तुम आते हुए
सदैव प्रेम मांगोगे और
"जाते हुए चाहोगे स्मृतियाँ"
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