shubham sharma   (शानू दाधीच)
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Joined 8 March 2018


Joined 8 March 2018
16 OCT 2018 AT 11:46


मैं किसी “डोर” सा, वो किसी “पतंग” सी...!!
मैं ये सोच महफ़ूज़ था की वो मुझसे बँधी है, पर वो हवाओ से गले लगने में मश्रूफ रही...!!

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10 AUG 2018 AT 16:15

अब ये न पूछना की..
ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ,

कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के,
कुछ अपनी सुनाता हूँ|

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20 JUL 2018 AT 0:17

मुहखत्सर सी मुलाक़ात क्या हुयी हम तो उल्फ़्त कर बेठे!!
ख़ुदा ही ख़ैरियत रखे अब,
हम तो उनके ज़ुल्फ़ों के जाल में ही ज़िंदगी मुकम्मल कर बेठे...।।

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18 JUL 2018 AT 20:03



क्या अब्बू, क्या चाचा, मामा,भाई
मैं तो अब हर किसी की गोद में जाने से कतराती हु अपने ही घर में, अपनो से अपनी मासूमियत बचाती हु...!!

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25 JUN 2018 AT 12:33

ये सिगरेट में भर न जाने लोग क्या पिए जा रहे है
ख़ुशी कहु या ग़म..!!
ये जो फिर हवा में उड़ायें जा रहे है
धुआँ कहूँ या यादों के पल..!!

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20 MAY 2018 AT 1:34

शायरी मेरी
ज़िक्र तुम्हारा

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19 MAY 2018 AT 18:17

इश्क़ तो वाक्य ही है गुलाब सा
हुआ तो "पंखुड़ियों" सा
मुकम्मल हुआ तो "काँटों" सा..।।

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1 MAY 2018 AT 21:05

शायद होगा कोई काम अगर "मजबूरी"
तो होती होगी वो ज़रूर "मज़दूरी"

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21 APR 2018 AT 11:18

न जाने क्यूँ उस रात वादे हुऐ ??
जो न हक़ में "तुम्हारे"
न हक़ में "हमारे" हुए!!

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18 MAR 2018 AT 16:15

धीरे धीरे सब कुछ बदल रहा है
मैं भी,
तुम भी,
और वक़्त भी।

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