मैं किसी “डोर” सा, वो किसी “पतंग” सी...!!मैं ये सोच महफ़ूज़ था की वो मुझसे बँधी है, पर वो हवाओ से गले लगने में मश्रूफ रही...!! -
मैं किसी “डोर” सा, वो किसी “पतंग” सी...!!मैं ये सोच महफ़ूज़ था की वो मुझसे बँधी है, पर वो हवाओ से गले लगने में मश्रूफ रही...!!
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अब ये न पूछना की..ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ,कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के,कुछ अपनी सुनाता हूँ| -
अब ये न पूछना की..ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ,कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के,कुछ अपनी सुनाता हूँ|
मुहखत्सर सी मुलाक़ात क्या हुयी हम तो उल्फ़्त कर बेठे!!ख़ुदा ही ख़ैरियत रखे अब,हम तो उनके ज़ुल्फ़ों के जाल में ही ज़िंदगी मुकम्मल कर बेठे...।। -
मुहखत्सर सी मुलाक़ात क्या हुयी हम तो उल्फ़्त कर बेठे!!ख़ुदा ही ख़ैरियत रखे अब,हम तो उनके ज़ुल्फ़ों के जाल में ही ज़िंदगी मुकम्मल कर बेठे...।।
क्या अब्बू, क्या चाचा, मामा,भाईमैं तो अब हर किसी की गोद में जाने से कतराती हु अपने ही घर में, अपनो से अपनी मासूमियत बचाती हु...!! -
क्या अब्बू, क्या चाचा, मामा,भाईमैं तो अब हर किसी की गोद में जाने से कतराती हु अपने ही घर में, अपनो से अपनी मासूमियत बचाती हु...!!
ये सिगरेट में भर न जाने लोग क्या पिए जा रहे है ख़ुशी कहु या ग़म..!!ये जो फिर हवा में उड़ायें जा रहे हैधुआँ कहूँ या यादों के पल..!! -
ये सिगरेट में भर न जाने लोग क्या पिए जा रहे है ख़ुशी कहु या ग़म..!!ये जो फिर हवा में उड़ायें जा रहे हैधुआँ कहूँ या यादों के पल..!!
शायरी मेरीज़िक्र तुम्हारा -
शायरी मेरीज़िक्र तुम्हारा
इश्क़ तो वाक्य ही है गुलाब साहुआ तो "पंखुड़ियों" सा मुकम्मल हुआ तो "काँटों" सा..।। -
इश्क़ तो वाक्य ही है गुलाब साहुआ तो "पंखुड़ियों" सा मुकम्मल हुआ तो "काँटों" सा..।।
शायद होगा कोई काम अगर "मजबूरी"तो होती होगी वो ज़रूर "मज़दूरी" -
शायद होगा कोई काम अगर "मजबूरी"तो होती होगी वो ज़रूर "मज़दूरी"
न जाने क्यूँ उस रात वादे हुऐ ??जो न हक़ में "तुम्हारे"न हक़ में "हमारे" हुए!! -
न जाने क्यूँ उस रात वादे हुऐ ??जो न हक़ में "तुम्हारे"न हक़ में "हमारे" हुए!!
धीरे धीरे सब कुछ बदल रहा हैमैं भी,तुम भी,और वक़्त भी। -
धीरे धीरे सब कुछ बदल रहा हैमैं भी,तुम भी,और वक़्त भी।