फिर आयी वो रूहानी शाम,
साँस को मिल गया आराम,
आवाज़ों का हुआ फिर आगाज,
पिया मिलन की जो है रात।
चेहरा देखे हुए कई साल,
याद करता मैं बारम्बार,
फिर मिलन की जो वेला आयी,
अब फिर होने दो आँखे चार।
विरह की अज़ब पीड़ा है,
मन हुआ मेरा बावरा है,
तुक से सजाया ये साज,
प्रियतमा का दीवाना है।
मिलन जो होगा आज,
खोल देंगे सब ज़ज़्बात,
कह देंगे वे सभी अहसास,
जिसके लिए था किया इंतज़ार।
- आवारा मन "शुभम्"
21 JAN 2020 AT 8:28