बातें तो नहीं होती हैं उससे अब,
लेकिन बातें में रोज किया करती हूँ उससे अब भी |-
पूरा जीवन ही झोंक दिया चूल्हे में उसने, ऐसे हि माँ के हाथ के बने खाने में स्वाद नहीं आ गया...
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हाँ तैयार हूँ मैं,
पिछड़ी सोच के इतर बेरोजगार के साथ घर बसाने को.
क्या वो बेरोजगार तैयार है?
पित्रसत्तात्मक बेड़ी के इतर
मेरे परिवार में शामिल हो मेरा घर, परिवार, बच्चे, चूल्हा
संभाल कर मेरे माँ बाप की सेवा करने के लिए ?
वही काम जो सदियों से स्त्रियां करती आयी हैं उनके लिए !!-
नहीं जरूरत है अब
किसी की मुझे |
मैं ही काफी हूं
"खुद को बर्बाद"
करने के लिए ||-
हर बार इस एकतरफा
के दर्द में दिल बोल उठा
"अब बस" |
और हर बार फिर
एक 'आस' में
यही दिल बोल उठता है
"बस, एक आखिरी बार ...-
गलत!
आखिर ठहराऊं भी तो किसे,
तुझे या मुझे ?
अरे ! छोड़िए जनाब...
परिस्थितियां ही गलत थी||-
Life is like a water of river,
Live like that flow.
यात्रा करते रहे तो नए नए जिंदगी के रोचक
पड़ाव आते रहेंगे,
लेकिन जहां भी आप अटक गए,
समझ लो वहीं पर भटक गए!-