धीरे-धीरे जीवन हमें सिखाता है कि लोग आएँगे और चले जाएँगे, कभी बिना कारण, कभी बिना अलविदा कहे। शुरुआत में हर बिछड़ना दिल तोड़ता है, पर समय के साथ समझ आता है कि हर किसी का आना किसी उद्देश्य से होता है: कुछ प्रेम सिखाने, कुछ धैर्य, और कुछ बस हमें मजबूत बनाने। हर रिश्ता हमेशा के लिए नहीं होता; कुछ बस एक अध्याय की तरह आते हैं और पूरा होते ही चले जाते हैं। तब हमें समझ आता है कि हम गलत नहीं थे, बस कहानी वहीं तक थी। जब ये बात दिल से स्वीकार कर लेते हैं, तब एक अनोखी-सी शांति मिलती है... कि जो हमारे पास है, वही ठीक है, और जो चला गया, उसका समय बस समाप्त हो गया था। यही जीवन है, जिसमें लोगों का आना, जाना और हर मोड़ पर खुद को थोड़ा और अधिक समझना शामिल है।
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भीगती आँख से उसकी
कोई आंसू चुराना हो,
उसी से इश्क़ है अब भी,
यक़ीँ उसको दिलाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं..-
नववर्ष नई ऊर्ज़ा एवं नवीन उत्साह का संचार करते हुए आपकी आशाओं, आकांक्षाओं एवं इच्छाओं के अनुरूप हो ।
आपको एवं आपके परिवार को नूतनवर्ष की अनंत शुभकामनाएँ…
आप सदैव प्रगति के पथ पर अग्रसर रहें , आपके यश और वैभव में वृद्धि हो , आपका शरीर स्वस्थ्य, निरोग एवं मन हमेशा प्रसन्न रहे।
नववर्ष की मंगलकामनाओं सहित
शिवम् मिश्रा-
शिकायतें भी ज्यादा दिन नहीं रहतीं, न भगवान से न इंसान से। न ही अपेक्षा या प्रार्थना ही बचती है। जो होना होता है,हर हाल में होकर रहता है। वश केवल ख़ुद पर ही है।
अपेक्षा,उपेक्षा,हर्ष,विषाद,लगाव,और दुराव सब अपने पर लागू करने हैं। किसी और पर नहीं, यहाँ तक कि ईश्वर पर भी नहीं।-
झूठ, सच,किस्से,कहानी, कथन क्या संवाद क्या,
भरण पोषण, मत्यु जीवन, सृजन क्या संहार क्या,
चर अचर नर देव दानव जिसकी कृपा से अविभूत हैं,
वो रचयिता है जहाँ का , उसके सामने किरदार क्या ll
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अपने जीवन में पूर्णता होने के उपरांत भी अपूर्णता का अनुभव करना, और भौतिक पूर्णता को छोड़कर उस अपूर्णता की तलाश में निकल जाना ही आपको बुद्ध बनाता है।
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चुप चुप रहने वाले लोग
कुछ ना कहने वाले लोग,
भला बुरा जो मिला जगत से,
सब कुछ सहने वाले लोग,
तालाबों में जा बैठे हैं,
नदी से बहने वाले लोग,
हमको चकाचौंध से क्या है,
ख़ुद में रहने वाले लोग ।।-
खुशियाँ ढ़लते सूरज जैसी,
दुःख का साथ रहे हरदम,
सबके अपने अपने मसले,
सबका अपना अपना ग़म..-
स्मरण रहे ! दुःख और पीड़ा के फल सर्वथा 'अपेक्षाओं' के वृक्ष पर फलित होते हैं|
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कभी कभी लगता है कि हम अपनी किस्मत में ही 'अधूरापन' लिखवा कर लाए हैं..
अधूरा बचपन..
अधूरे रिश्ते...
अधूरा इश्क़ ..
और इस अधूरेपन के अंधकार में हम अकथ्य दर्द की छटपटाहट में हाथ पैर मारते हुए, आधा अधूरा जीवन जीते चले जाते हैं...-