Shivam Kumar   (शिवम्)
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Joined 1 March 2017


Joined 1 March 2017
26 APR 2020 AT 7:36

हां आज बारिश का कहर देख कर
तुम्हारी याद आ गई,
तुम्हारा वो गुस्सा, तुम्हारी वो नाराज़गी दिखी इस बारिश में

वो बारिश की छीटे,
जो चुपके से खिड़की से मुझे भिगाना चाह रही थी
तुम्हारा वो मुझे चुपके से भीड़ में छू लेने की शरारत याद दिला गई!
वो बिजली के कड़ाके की आवाज़,
तुम्हारी नाराज़गी में मुझपे चिल्लाने की याद दिला गई
वो बारिश के बंद ना होने का हठ
हमारी नोंक झोंक के बाद तुम्हारे आँखों की वो धार की याद दिला गई
वो ठंडी हवाऐं जो बहते हुए मुझे छुए जा रही थी
तुम्हारे बोसो से मेरे लबों की वो कम्पन याद दिला गई

वो उस बारिश में मेरा कदम रखते ही उसका रुक जाना
तुम्हारा मुझे छोड़ कर चले जाने की याद दिला गई..
शायद तुम मुझे भीगने नहीं देना चाहती थी
या शायद मुझे धूप में अकेला तड़पने देना चाहती थी..
क्या पता ?

हाँ, आज बारिश का कहर देख कर
तुम्हारी याद आ गई !

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26 NOV 2019 AT 18:40

वक़्त ने खुद को दोहराया था..
जगह वही, लोग वही..
हमें किस्मत ने फिर से मिलाया था
थे तो हम बिल्कुल आस पास..
पर ना जाने क्या मजबूरी थी ?
सामने होने के बाद भी..
क्यों इतनी दूरी थी ?

मैं था वहीं ..तुम भी थी वहीं,
पर ना जाने क्या बदल गया था हमारे बीच ?
बातें तो हज़ार हो सकती थी..
पर फ़िर वो बीच में चुप्पी कहाँ से आ गई थी ?
इसका ऐहसास तो मुझे था..
पर ख़बर इसकी शायद तुम्हें भी थी..
तो फ़िर क्यों भावनाएं अंदर डुबक कर बैठी थी ?
पवित्र से इस रिश्ते में..
ये मुलाक़ात कहीं.. बनावटी तो नहीं थी ?

वक़्त ने खुद को दोहराया था..
जगह वही, लोग वही..
हमें किस्मत ने फिर से मिलाया था
थे तो हम बिल्कुल आस पास..
पर ना जाने क्या मजबूरी थी ?
सामने होने के बाद भी..क्यों इतनी दूरी थी ?

ये मुलाक़ात मेरे मन में सवाल दे बैठी है.
क्या ये दूरी मिटने की आस थी ?
या फ़िर कभी न मिलने की मंजूरी थी ?
कहने को तो थे हम इतने पास..... ना जाने क्यों इतनी दूरी थी ?

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6 SEP 2019 AT 14:00

उलझने क्या बताऊँ ज़िन्दगी की अब,
जब जंग ख़ुद से ख़ुद ही का हो
तो जीत क्या और हार क्या ?

समझाना चाहता हूँ, पर कोई समझता नहीं
या समझना नहीं चाहता !
अपने अंदर के सैलाब को आँखों से बहाना चाहता हूँ,
पर कोई महसूस करता नहीं
या करना नहीं चाहता !

आभास मेरे दर्द का तो चेहरे पे साफ दिखता है,
पर कोई देखता नहीं
या देखना नहीं चाहता !
अब तो ख़ुद का चेहरा भी आईने में डराता है,
मैं उससे लड़ना तो चाहता हूँ
पर लड़ नहीं पाता !

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4 SEP 2019 AT 19:49

शहर में इतना शोर है..
मुझे क्यों कुछ सुनाई नहीं देता ?
हर रोज़ होती भोर है..
मैं क्यों उठ कर अंगड़ाई नहीं लेता ?

इस जग में हज़ारों लोग हैं..
क्यों रास्तों में साथ परछाई नहीं देता ?
वो अगर रूठा है मुझसे तो..
क्यों मुझे बेवफाई भी नहीं देता ?

सफ़र-ए-ज़िन्दगी अकेले नही कटती..
मुझे क्यों कोई मुसाफ़िर दिखाई नहीं देता ?
मेरे अंदर जो ये तड़प है..
मेरा मन मुझे क्यों दुहाई नहीं देता ?
आखिर क्या गुनाह किया है मैंने जो..
मेरा दिल मुझे मुझसे मेरी रिहाई नहीं देता ?

बोहोतों ने सताया है मुझे..
मैं क्यों ज़माने में उनकी रुसवाई नहीं करता ?
मरीज़ बन गया हूँ शायद ज़िन्दगी के प्रयोगों का..
फिर भी क्यों ख़ुद की देख-भलाई नहीं करता ?

इस भाग-दौड़ और चका-चौंध से थक गया हूँ अब ..
क्यों कोई हौसला अफ़ज़ाई नहीं करता ?
खुश होने के तरीके कई हैं..
मैं क्यों अपने ग़म से तन्हाई नहीं करता ?

इस शहर में न.. बोहोत शोर है..
पर मुझे क्यों ...
...कुछ सुनाई नहीं देता ?

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11 JUN 2019 AT 23:36

प्रकृति
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(कैप्शन में पढ़ें)

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12 MAY 2019 AT 18:34

माँ क्यों कुछ तेरे प्यार में लिख नहीं पाता मैं ?
क्या सारी दुनिया का स्नेह तूने ही ले लिया था ऊपरवाले से ?
क्यों नही बता पाता के आज भी सुबह लेट से उठता हूँ ताकि सुबह सबसे पहली आवाज़ तुम्हारी हो जिससे उठ सकूँ ।
क्यों नहीं बता पाता की तुम्हारे हाथ के खाने में कोई अमृत है जो संसार के सारे स्वादिष्ट व्यंजन फ़ीके लगते हैं ।
क्यों नहीं बता पाता की माथे पर तेल खुद से नहीं लगाता, क्योंकि तेरी चम्पी से दुनिया भर की चिंताओं से मुक्त हो जाता हूँ ।
क्यों की नहीं बता पाता के हर मंदिर में उस मूर्ति की प्रतिबिम्ब में तुम हो !
क्यों नहीं बता पाता के, मुसीबत के हर उस क्षण में हिम्मत नहीं हारता क्योंकि प्रेरणाओं का स्त्रोत तुम ही हो !
माँ पता नहीं तुम में कहाँ से आती है ये निश्छल, अनंत स्नेह की धारा ? मैं कोई भगीरथ तो हुँ नहीं !
माँ पता नहीं कहाँ से आती है तुम्हारी वो शक्ति, वो हिम्मत का पिटारा, वो जादू की झप्पी ।
इस दिल में धड़कन है उसका कारण तू है।
इस जीव में साँस है तो उसका कारण तू है ।
इसमें जो भी मिठास है उसका कारण तू है ।
माँ, मैं बस इतना जानता हूँ के .. मेरे आज होने का कारण तू है !

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22 APR 2019 AT 12:02

काश मैं एक छोटा बच्चा होता,
बिना शर्म के शायद अधनंगा होता..
बिना किसी फिक्र , दिन भर दौड़ लगाता होता..
वो रोना बस पल भर का क़िस्सा होता

काश मैं एक छोटा बच्चा होता..
ना मकान की ज़रूरत होती,
वो माँ का आँचल ही सारा जहाँ होता..
ना भूख की कोई चिंता होती,
पापा की जेब ही सारी दुनिया का खज़ाना होता,
अकेले चलने की जरूरत ना पड़ती
और गिर जाने पे माँ-बाप का सहारा होता..
लड़ने को दुश्मन ना होते
भाई बहनों की नोकझोंक से
ही वो गुस्सा हमें नागंवारा होता

काश मैं एक छोटा बच्चा होता,

ज़िन्दगी बोझ नहीं..एक सफ़र सुहाना होता,
जहाँ हर ग़म खज़ाना
और हर ख़ुशी एक किनारा होता..!

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2 APR 2019 AT 17:32

मैंने जीवन जी कर देखा है..
लोगों को अपनी ज़मीर बेच,
शून्य तक गिरते देखा है..
रिश्तों की मर्यादा भूल,
अक्सर उनके साथियों को साथ खड़ा देखा है..
प्यार,स्नेह तो बीते ज़माने की बातें हो गई साहब,
मैंने आज लोगों को नफ़रत और ईर्ष्या,
बड़ी शिद्दत से करते देखा है..

शराफ़त का झंडा ले,
अंदर खंज़र रखते देखा है..
जैसे पूरी दुनिया की ज़ुबान सुधारने का ठेका उन्हीं ने ले रखा है..

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26 MAR 2019 AT 11:59

तुम्हारी खुशबू मिट्टी से बोहत मिलती है..
तब ही आती है जब बारिश होती है..
फिर चाहे वो आँखों से हो.. या आसमान से !

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20 MAR 2019 AT 16:02

छुअन से उसकी..
मेरे चेहरे लाल हो गए,
रंगों की जरूरत क्या थी,
उसके हाथ जैसे गुलाल हो गए !

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