मासूम परी थी वो,तुम्हे चाचा कह बुलाती थी
देख तुम्हे वो खुश होती,मुस्कुराती,इठलाती थी।
मासूम की मुस्कान में तुम्हें, कब मादकता दिखी,
बता रे बुज़दिल!यह बेशर्मी तुमने कहाँ से सीखी।
लज्जा जाती बेशर्मी भी,पर तूने ताकत कहाँ से जुटाई,
देख तेरी करतूत,वो जननी,वो कोख भी होगी शरमाई।
भूल गया तेरी बेटी,तेरी बहिन,वो जननी काली माई,
कौन बोलेगा तुम्हे बता अब अपना बेटा,अपना भाई।
दुर्गा का आह्वान भुला, भूल गया परिवार औ संस्कार,
कैसे मर्द बनें तुम,माँ का रोम रोम रहा होगा धिक्कार।
चीर तुम्हे आरे से दें या दें बोटी बोटी काट,
कैसे होगा अरे,नराधम! यह कम तेरा पाप।
।।शिव।।-
।। अभिनंदन।।
त्याग,तपस्या और बलिदान की पावन धरा
राजस्थान में आपका स्वागत,अभिनंदन।
।।शिव।।-
तरक्की के तैश में,भले ही आज
सूर्य चन्द्र को गेंद बना लो।
खुश हो तो राहु,केतु,शनि को दिखा आंख,
शुक्र,गुरु का मजाक उड़ा लो।।
मेरा क्या करेगा अमंगल,मंगल,
बुद्ध से युद्ध में विजयी बता दो।
काल चक्र की गति घूमेगी जिस दिन,
तुम आसमान से धरती पर।
गया सिकन्दर,ख़िलजी-बाबर भी
मटियामेट हुआ इसी धरा पर।।
मत मानो ग्रह,गृहणी का तो सम्मान करो,
मत धर्म पथ का अपमान करो।
मत मानो तुम पूजा,ना करो अजान
बस इंसानियत में विश्वास करो।।
धर्म दंड जब उठता है,यह निश्चित है
वह न्याय तत्क्षण करता है।
उन्नति की मस्ती में क्यों पगले
अधोगति अपनी करता है।
।।शिव।।-
भूख इतनी ही थी तो क्या माँ खुद की नज़र ना आई उसको?
थी आग इतनी ही तो बहिन खुद की नज़र ना आई उसको?
पापी का पाप कम नहीं होता,उम्र और धर्म के चोलों से,
छेद दो हर भाग जिस्म का उसका,नुकीले कीलों से।
वहशी बन वो टूट पड़ा था,आंगन की किलकारी पर,
तरस नहीं आया उस मासूम की लाचारी पर।
क्या यही भारत है जहाँ सीता हरण पर रावण वध होता है,
द्रोपदी का चीर छूने पर महाभारत का रण काली-खप्पर भरता है।
आज मौन क्यों है,भारत का राम,क्यों नहीं भीम हुंकार भरता है?
गीता ज्ञान क्यों राजघाट पर सुबक सुबक कर रोता है?
मक्का में फेंक पत्थर तुम शैतान मार लेते हो,
जला भारत में रावण तुम मुख मोड़ लेते हो।
गर है तुम में गैरत जिंदा तो एक काम कर लो,
ना दो अग्नि चिता को,ना कब्र में दफनाने दो।
बांध किसी खम्भे से,जिस्म पूरा छिदवा दो,
हर घर बस नारी मान और रिश्तों की शिक्षा दो।
।।शिव।।
-
तुम जीत सकते हो एक बार छल से,कपट से जैसे जीती कौरवों ने दृत क्रीड़ा...पर आखरी जय तो सत्य की है क्योंकि वहां धर्म है,जहां धर्म वहां कृष्ण और जहां कृष्ण वहां जय।
मेरा सत्य ही मेरा कृष्ण है,वही मेरी जय है।
।।स्वामी शेखरेंद्र।।-
मेरे पीछे चलकर पिछलग्गू कहलाओ या मैं पीछे चलकर पिछलग्गू इससे अच्छा है साथ चले साथी बनकर....इसलिए शास्त्र कहते है सद गच्छ...
।।स्वामी शेखरेंद्र।।-
किसी ने कहा- क्या है तेरे पास? सारे दिन शब्दों की जुगाली करता रहता है।
मैंने मुस्कुराकर कहा शब्द छोटे ही होते है हाँ और ना पर किसी की जिंदगी बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। विश्वास नहीं तो आजमाकर देख लो...।
।।स्वामी शेखरेंद्र।।-
मन में गांठ रखने से अच्छा है कि नाराजगी जाहिर कर दो।
।।स्वामी शेखरेंद्र।।-
प्रलयंकर शिव का ध्यान धरूँ,
जग जननी का आह्वान करूँ।
धर्म पथ पर अविचल, अडिग चलूं,
सत्य का अनुगामी मैं क्यों फिर डरूँ।
नहीं होना अजर अमर,पर क्यों भयभीत रहूं,
मिले आशीष,बस जय का वरण करूँ।
।।शिव।।-
मैं शिव आराधक,शक्ति पूजक,
सदैव रहा दाता, नहीं मैं याचक।
भयभीत नहीं मैं,रक्षा करते प्रलयंकर,
सत्य पथ अनुगामी,मैं जय का शुभंकर।
धर्म पथ पर अडिग,रोके कोई मुझे आकर,
अंधकार जब धना हो,आये स्वयं दिवाकर।
विष से क्यों डरूँ जब साथ खड़े हो विश्वेश्वर,
लंका विजय में जैसे साथ खड़े थे रामेश्वर।
हनुमंत रक्षा करते हो,भैरव भय हरते हो,
श्याम सहारा देते हो,काल सदा शिव हरते हो।
विराट समाज सागर का मैं एक बिंदु
है गर्व मुझे कि मैं हूँ ,मेरे पुरखे थे हिन्दू।
।।शिव।।-