चाँदनी रात में जैसे चांद की रोशनी,
उसके चेहरे पर एक गजब का कहर ढ़ा रहा था,
उस रात वो खुद चाँद नज़र आरहा था।।
होंठ थे खामोश पर उसकी आँखे,
जैसे बात कर रही थी,
बिन छुहे बिन बोले,
वो मेरे दिल को धड़का रहा था।।
ये ख़ामोशी भी उस पर ,
क्या खूब सज रहा था।।
उसकी रोशनी में मैं सिमटती जा रही थी,
पर उसका चेहरा मेरी ही नजरों को ही,
देखे जा रहा था।
जैसे मेरे ही आंखों में उसने मुझे पा लिया हो ।।
रास आ गया था उसको,
मेरे साथ ढलने का,
ये मुस्कुराहट ये बातें,
शायद पसंद आने लगी थी मेरी।।
रूह की मोहब्बत होती ही ऐसी है,
उससे मिलने से ज़्यादा,
उसकी मुस्कुराहट की फ़िक्र होती हैं।।
ये चाहत है या रूह की मोहब्बत,
ये तोह वही जाने ,
जिसने इसकी इबादत की हैं।।
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