हर लिखी हुई मुश्किलों से गुज़र चूका हूँ मैं,
ये कोई जरूरी नहीं,
ज़िन्दगी के हर लम्हे को जी रहा हूँ मैं,
ये कोई ज़रूरी नहीं।
बात नहीं हो रही, तो भूल चूका हूँ मैं,
ये हर्गिज़ नहीं,
हिचकी नहीं आयी, तो याद नहीं करता मैं,
ये हर्गिज़ नहीं।
खामोश बैठा राहें देखूँ तो तन्हा हूँ मैं,
ऐसा भी नहीं,
भीड़ में खिलखिलाते हुए खुश हूँ मैं,
ऐसा भी नहीं।
परायों के कहने पर तुम्हें धोकेबाज़ मान लूँ मैं,
ये मुमकिन नहीं,
तुम्हारा तकिये लिए बिना रातों को सो जाऊँ मैं,
ये मुमकिन नहीं।
नादान हूँ, कभी गलती कर जाऊँ मैं,
तुम वापस न आओ फिर कभी,
ऐसा भी हर्गिज़ मुमकिन नहीं।
- Gulzar