आज अनायास ही भोर में नहाने गई,
कहीं दूर से मंत्रों की मधुर आवाज़ आई,
ऐसे लगा जैसे मैं वहीं थी, मगर उन्मुक्त
गगन में ऊंचाईयों को छू रही हूं।
हां, ऐसा लगा जैसे श्राद्ध कर रही हूं
अपने डर का, अपनी कमजोरियों का,
विसर्जन कर रही हूं, अपने मन की कटुता का,
जैसे मैं मुझमें ही एक नया जीवन भर रही हूं।
आज एक नई सुबह के साथ,
मेरे जीवन का नया सवेरा हुआ,
कल तक कोहरा सा कुछ था चारों ओर,
आज साफ साफ नज़र आता है हर छोर।
मैंने आज खुद को मुक्त किया, समाज के
झूठे नियमों से, जो समाज मेरी तकलीफ में
कभी नहीं आया, उस समाज की स्वार्थप्रद आशाओं से।
मन में दृढ़ संकल्प किया है, आज मुझे नया जीवन मिला है,
इसे मैं व्यर्थ न गंवाउंगी, अब खुद से रिश्ता निभाऊंगी,
बस खुद से रिश्ता निभाऊंगी...- MuteMusingsMutated
13 MAR 2019 AT 7:34