के कुछ लिखूं
अपने पीछे, कुछ जज़्बात,
कुछ अल्फ़ाज़ छोड़ जाऊँ।
पर ज़िन्दगी कुछ इस कदर
महेरबान हुईं
आज अपनी मौजूदगी में
उन लम्हात का मज़ा ले रही हूँ
जिसकी कभी तमन्ना की थी।- Shamim Merchant
30 NOV 2020 AT 9:35
के कुछ लिखूं
अपने पीछे, कुछ जज़्बात,
कुछ अल्फ़ाज़ छोड़ जाऊँ।
पर ज़िन्दगी कुछ इस कदर
महेरबान हुईं
आज अपनी मौजूदगी में
उन लम्हात का मज़ा ले रही हूँ
जिसकी कभी तमन्ना की थी।- Shamim Merchant